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________________ तरा. भाषा अध्याय RECEMBAREAUC 656SHSSENGEEGLOR- आगमको अपौरुषेय (पुरुषकृत नहीं) अनादिनिधन और अत्यन्त परोक्ष भी पदार्थों का अप्रतिहतरूप 18 से ज्ञान करानेवाला मानते हैं इसलिये इसप्रकारके आगमसे समस्त पदार्थों का ज्ञान हो सकता है कोई | दोष नहीं ? सो भी अयुक्त है। कोई आगम अपौरुषेय है यह वात ही किसी प्रमाणसे सिद्ध नहीं। इस लिये अपौरुषेय आगमकी कल्पनाकर उससे अतींद्रिय पदार्थों की सिद्धि मानना सर्वथा असंभव है। तथा है जिस आगमको अपौरुषेय माना जाता है वह संसारमें वेदके नामसे प्रख्यात है परन्तु वह हिंसा आदि। | पाप कार्योंका प्रतिपादक है इसलिये वह कभी प्रमाणीक नहीं हो सकता इस रातिसे किसी आगमको ||| अपौरुषेय मान उससे अतींद्रिय पदार्थोंकी उत्पचि मानना कल्पनामात्र है। अतींद्रियं योगिप्रत्यक्षमिति चेन्नार्थाभावात् ॥९॥ __यदि यह कहा जाय कि इम योगियोंके ज्ञानको अतींद्रिय प्रत्यक्ष मानते हैं और वह आगमसे नहीं हूँ हूँ उत्पन्न होता इसलिये उस योगियोंके अतींद्रियज्ञानसे समस्त पदार्थों का ज्ञान हो सकता है कोई दोष नहीं। है। इसी वातका पोषक यह वचन भी है-"योगिनां गुरुनिर्देशादतिभिन्नार्थमात्रहक्' अर्थात् गुरुके उपदेश है से योगी लोग अत्यन्त भिन्न-परोक्ष भी समस्त पदार्थों को देखते हैं। सो भी ठीक नहीं। प्रत्यक्ष शब्द है * का जब अक्षरार्थ किया जायगा उस समय 'जो इंद्रियोंकी सहायतासे हो वह प्रत्यक्ष है' यह प्रत्यक्ष शब्द का अर्थ होगा। ऐसा अर्थ करनेसे योगिज्ञानको प्रत्यक्ष नहीं कहा जा सकता क्योंकि वहांपर योगिज्ञान 5 में इंद्रियां कारण नहीं पडती इसलिये प्रत्यक्ष शब्दके इस उपर्युक्त अर्थसे योगिज्ञान अतींद्रिय प्रत्यक्ष * नहीं हो सकता अथवा द्रव्यका लक्षण 'सत्' माना गया है और वह उत्पाद व्यय और प्रौव्य स्वरूप ( २६७ है कहा गया है। सादादसिद्धांत-जैनसिद्धांतके सिवा अन्य सिद्धांतोंमें पदार्थों की व्यवस्था एकांतरूपसे । SHREECREA R ECORRESISTERIES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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