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________________ व०रा० भाषा ११ |६|| रहित, व्यभिचाररहित और सविकल्पक हो वह प्रत्यक्ष ज्ञान है, यह प्रत्यक्ष ज्ञानका युक्तिसिद्ध लक्षण है। विशेष-बहुतसे विशेषण अनिष्ट बातकी व्यावृत्ति के लिये हुआ करते हैं और बहुतसे विशेषणोंका ॥ प्रयोग स्वरूप निर्देशके लिये किया जाता है । वार्तिककारने जो यहां प्रत्यक्षका लक्षण कहा है और उस || के विशेषण दिये हैं उनमें मतिज्ञान और श्रुतज्ञानकी निवृत्ति के लिये इंद्रियानिद्रियानपक्ष यह व्यावर्तक विशेषण दिया है क्योंकि उससे मतिज्ञान और श्रुतज्ञानको प्रत्यक्षज्ञानपनेकी व्यावृत्ति की गई है। अवधि का दर्शन और केवलदर्शनकी निवृचिके लिये जो सविकल्पक विशेषण दिया है वह भी व्यावर्तक विशेषण है । । क्योंकि दर्शनको निर्विकल्पक माना है इसलिये सविकल्पक कहनेसे अवधिदर्शन और केवलंदर्शनकी व्यावृत्ति हो गई परन्तु कुमति आदि विभंग ज्ञानोंको प्रत्यक्षज्ञानकी निवृत्ति के लिये जो अतीतव्यभिचार विशेषण दिया है वह प्रत्यक्षके स्वरूप निर्देशके लिये है क्योंकि विभंग ज्ञान इंद्रिय और मनकी | अपेक्षासे होता है-विना अपेक्षाके नहीं हो सकता इसलिये 'इंद्रियानिद्रियानपेक्ष' इस विशेषणसे ही विभंग ज्ञानोंकी निवृत्ति हो जाती है इस रीतिसे इंद्रियानिद्रियानपेक्ष और सविकल्पक ये प्रत्यक्षके दो । विशेषण तो व्यावर्तक विशेषण हैं। और अतीत व्याभिचार यह विशेषण स्वरूपका प्रतिपादक विशे-है। षण है। ___ इस वार्तिकमें जिस रूपसे प्रत्यक्षका लक्षण बतलाया है उसी रूपसे प्रत्यक्षका लक्षण नहीं है किंतु 18|अन्य रूपसे भी है, और वह इस प्रकार है अक्षं प्रतिनियतमिति परापेक्षानिवृत्तिः॥२॥ .. 'अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीति अक्षः' जो पदार्थोंको जाने वह अक्ष कहा जाता है और उस NAGSPEOPLEABLEGECREBARBADOHOREA ACASSASABREPEA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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