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________________ त०रा० भाषा २५१ पदार्थ, राम रावण आदि कालांतरित मेरु आदि विप्रकृष्ट देशांतरित पदार्थ, भूत भविष्यत् वर्तमान कालके भेद से अनंते हैं और मन एवं इंद्रियोंकी प्रवृत्ति एक साथ ही नहीं - क्रमने होती है तथा उनका विषय भी मर्यादाकोलीये निश्चित है। इंद्रिय और मनमें समस्त पदार्थों के जानने की शक्ति नहीं इसलिये संसारके समस्त पदार्थों के साथ उनका सन्निकर्ष नहीं हो सकता तथा सन्निकर्ष के अभाव में जिन पदार्थों के साथ सन्निकर्ष नहीं हुआ उनका जानना रूप फल भी नहीं प्राप्त हो सकता इसरीति से सर्वज्ञ के ज्ञानमें सन्निकर्षको प्रमाण मानने पर समस्त पदार्थों के साथ सन्निकर्ष न घट सकनेके कारण सर्वज्ञका अभाव ही कहना पडेगा । इसी तरह इंद्रियोंकी प्रवृत्ति क्रमसे होनेके कारण इंद्रिय और पदार्थ इन दो कारणोंसे होनेवाला भी सन्निकर्ष सर्वज्ञ ज्ञानमें कारण नहीं पड सकता क्योंकि त्रिकालसंबंधी पदार्थ अनंत हैं, इंद्रियां उन सबके साथ संबंध नहीं कर सकतीं इसलिये समस्त पदार्थों के ज्ञानमें कारण न होनेसे सन्नि कर्ष कभी प्रमाण नहीं माना जा सकता । यदि यहां पर यह समाधान दिया जाय कि सर्वगतत्वादात्मनः सकलेनार्थेन सन्निकर्ष इति चन्न तस्य परीक्षायामनुपपत्तेः ॥ १७ ॥ हमारे मत आत्मा व्यापक है - सर्वज्ञ मोजूद है इसलिये सब पदार्थों के साथ उसका संबंध होनेसे सब पदार्थों का ज्ञान हो जायगा, सर्वज्ञका अभाव नहीं हो सकता ? सो भी ठीक नहीं । यदि आत्माको व्यापक और निष्क्रिय माना जायगा तो उसमें किसीप्रकार की क्रिया तो होगी नहीं फिर वह पुण्य और पापका कर्ता न हो सकेगा तथा पुण्य और पापके कारण संसार और उसके अभाव हो जानेपर मोक्ष | होती है सो अब दोनों ही बातें आत्माके न हो सकेंगी क्योंकि न उसके पुण्य और पापका उपार्जन होग और न नाश हो सकेगा इसलिये आत्माको व्यापक माननेपर सर्वज्ञकी सिद्धि कर सन्निकर्ष प्रमाण Ste अध्याय १ २५% ---
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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