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अध्याय
% नहीं हो सकता। यदि यहांपर यह कहा जाय कि आत्माके हम संसारकी सचा नहीं मानते इंद्रियोंके ॐ संसार होता है यह कहते हैं, सो भी ठीक नहीं । संसारका संबंध चेतन पदार्थके साथ हो सकता है -
अचेतनके नहीं । इंद्रियां अचेतन हैं इसलिये उनके साथ संसारकी घटना नहीं घट सकती। यदि हठात् ९ इंद्रियोंके ही संसार माना जायगा तो फिर मोक्ष भी उन्हींकी होगी आत्माकी नहीं हो सकती क्योंकि टू ९ संसारका छुट जाना मोक्ष है। जिसके साथ संसारका संबंध रहेगा वही मुक्त होगा। संसारका सम्बंध
इंद्रियोंके साथ है इसलिये वे ही मुक्त होंगी, आत्मा नहीं। फिर आत्मा पदार्थका मानना ही व्यर्थ हो । जायगा इसलिये आत्मा व्यापक नहीं कहा जा सकता। और भी यह वात है कि
सवैद्रियसन्निकर्षाभावश्च चक्षुर्मनसोः प्राप्यकारित्वाभावात् ॥१८॥ ___ इंद्रियों का पदार्थों से संयोग होनेपर सन्निकर्ष माना है सो समस्त इंद्रियां तो पदार्थों से संयुक्त होती
नहीं क्योंकि नेत्र और मनका सम्बंध संभव नहीं इसलिये जब समस्त इंद्रियोंसे सन्निकर्षका होना 1 असंभव है तब सन्निकर्ष प्रमाण नहीं माना जा सकता। नेत्र और मनका पदार्थों से संयोग होना कैसे असंभव है ? यह वात आगे विस्तारसे लिखी जायगी। तथा
सर्वथा ग्रहणप्रसंगश्च सर्वात्मना सन्निकृष्टत्वात् ॥१९॥ जिन इंद्रियोंका पदार्थों से संबंध माना गया है वे इंद्रियां सब ओरसे पदार्थके साथ सन्निकर्ष करती न है इसलिये सर्व प्रकारसे पदार्थका ज्ञान होना चाहिये किंतु वहां तो यत् किंचित अंशका ज्ञान होता है ॥
अर्थात् जिस पदार्थकी सुगंधिका नाकसे ज्ञान हुआ है वहांपर जब नासिका इंद्रियका सब ओरसे पदार्थ * के साथ संबंध है तब इसमें इतने परमाणु दुधिके हैं इतने सुगंधित हैं इत्यादि सब प्रकारसे उसका ६
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