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उलट
वक्ष्यमाणभेदापेक्षया द्वित्वनिर्देशः ॥ १४ ॥
'प्रमाणे' यह नपुंसकलिंग का द्विवचन है । 'आद्ये परोक्षं ॥ ११ ॥ प्रत्यक्षमन्यत् ॥ १२ ॥ आदिसे मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दो परोक्ष ज्ञान हैं और शेष प्रत्यक्ष हैं, यह आगे कहेंगे । उन्हीं प्रत्यक्ष और परोक्षकी अपेक्षा 'प्रमाणे' यह नपुंसकलिंग द्विवचन है अर्थात् प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ज्ञान प्रमाण हैं । तद्वचनं सन्निकर्षादिनिवृत्त्यर्थं ॥ १५ ॥ सन्निकर्षे प्रमाणे सकलपदार्थपरिच्छेदाभावस्तदभावात् ॥ १६ ॥
मतिज्ञान आदि जिन ज्ञानोंका पहिले वर्णन किया जा चुका है वे ही प्रमाण हैं सन्निकर्ष आदि प्रमाण नहीं है इस बातके सूचित करने केलिये सूत्र में तत् शब्दका पाठ रक्खा गया है अर्थात् मति आदि ही प्रमाण है अन्य नहीं । यदि यहां पर यह शंका की जाय कि सन्निकर्षको प्रमाण माननेमें क्या दोष होगा ? सो ठीक नहीं । जो मनुष्य सन्निकर्षको प्रमाण माननेवाले हैं और पदार्थों के ज्ञानको फल कहते हैं उनके मतमें समस्त पदार्थों के साथ सन्निकर्ष नहीं होगा इसलिये समस्त पदार्थों का ज्ञान नहीं हो सकता । वह इसप्रकार हैं
कोई न कोई सर्वज्ञ तो अवश्य मानना पडेगा यदि उस सर्वज्ञ के पदार्थज्ञान में कारण सन्निकर्ष माना जायगा तो वह बन नहीं सकता क्योंकि आत्मा मनके साथ संबंध करता है । मन, इंद्रिय के और इंद्रिय पदार्थ के साथ तब ज्ञान होता है इसरीतिसे कहीं तो आत्मा, मन, इंद्रिय और अर्थ ये चार बातें सन्नि कर्षमें कारण होतीं हैं । कहीं आत्माके सिवाय इंद्रिय आदि तीन बातें एवं कहीं इंद्रिय और पदार्थ ये दो बातें कारण पडती हैं । उनमें आदिका दो प्रकारका सन्निकर्ष अर्थात् चार कारणोंसे होनेवाला वा तीन कारणों से होनेवाला सन्निकर्ष तो सर्वज्ञ ज्ञानमें कारण हो नहीं सकता क्योंकि परमाणु आदि सूक्ष्म
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अध्याय
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