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________________ भाषा व०रा० MECORDCHOREOGA अर्थ-जिसतरह वर्तमानकालीन जलका वर्तमानकालीन घटसे संबंध है उसतरह उस जलका पीछे | हो जाने वाले अतीत और आगे होने वाले अनागतके साथ संबंध नहीं इसलिए वर्तमानकी अपेक्षा | जलका घटके साथ संबंध रहनेसे घट जलका स्पर्शन नहीं कहा जा सकता किंतु स्पर्शनका त्रिकालगोचर विषय है जिस जगह तीनों काल पदार्थकी सत्ता रह सके उसका नाम स्पर्शन है इसरीतिसे भी। जब क्षेत्र और स्पर्शनमें भेद है तब क्षेत्र शब्दका उल्लेख करने पर स्पर्शनका अर्थ सिद्ध नहीं हो सकता। स्थितिकालयोरांतरत्वाभाव इति चेन्न मुख्यकालगस्तित्वसंप्रत्ययार्थं ॥२०॥ . . . | निर्देश स्वामित्वेत्यादि सूत्रमें स्थिति शब्दका उल्लेख कर आए हैं और सत्संख्याक्षेत्रेत्यादि सूत्रमें || काल शब्द ग्रहण किया गया है परंतु हैं दोनों एक ही, क्योंकि जो स्थिति है वही काल है और जो काल है। है वही स्थिति है, इसलिए स्थिति शब्दके कहनेसे ही काल शब्दका प्रयोजन सिद्ध हो जाता है फिर || काल शब्दका ग्रहण करना व्यर्थ है ? सो ठीक नहीं। काल दो प्रकारका है एक मुख्य दूसरा व्यवहार । उनमें निश्चयकाल मुख्यकाल कहा जाता है और पर्याय विशिष्ट पदार्थोंके पर्यायोंकी हद जाननेवाला | अर्थात् घंटा घडी पल आदि व्यवहारकाल है। स्थितिका अर्थ कालकी मर्यादा है अर्थात् अमुक पदार्थ || | इतने काल तक अमुक जगह रहेगा बस इसी बातको स्थिति शब्द बतला सकता है किंतु वह काल निश्चय और व्यवहारके भेदसे दो प्रकारका है इस तात्पर्यको काल शब्द ही बतलाता है इसलिए निश्चय 5 और व्यवहारके भेदसे काल द्रव्य दो प्रकारका है यह बतलानेके लिए सूत्रमें काला शब्दका उल्लेख है सार्थक है। अथवा स्थिति शब्द व्याप्य है, कुछ एक पदार्थों के ही कालकी मर्यादा बतलाने वाला है और काल शब्द व्यापक है समस्त पदार्थों की मर्यादामें कारण है । (स्थिति, थोड़े ही पदार्थों के ज्ञान एनछHEME- MEMOR-09-ARAN AEBASABREGIOGRA २७
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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