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________________ RBARSASUPEPISISEX को धारण करनेवाला है। अधिकरणके कहनेसे संपूर्ण पदार्थों का ज्ञान नहीं हो सकता। क्षेत्रके कहनेसे है से संपूर्ण पदार्थों का ज्ञान होता है इसलिये समस्त पदार्थोंके ज्ञानके लिये क्षेत्र शब्दका सूत्रमें ग्रहण किया है ॐ गया है। क्षेत्रे सति स्पर्शनोपलन्धरंबुघटवत्पृथग्गृहणं ॥१७॥ न वा विषयवाचित्वात् ॥१८॥ घटस्वरूप क्षेत्रके रहते ही जल उसमें रहता है यह नियम है किंतु यह बात नहीं कि जल घडामें हूँ रहे किंतु वह घडासे संबंध न करे इसलिये जिस तरह घट जलका स्पर्शन माना जाता है। उसी तरह ड्र हूँ आकाशस्वरूप क्षेत्रमें जीव आदि समस्त द्रव्योंका नियमसे रहना है किंतु यह बात नहीं कि वे आकाश- हूँ 1 में रहें और उनका आकाशके साथ संबंध न हो इसलिये आकाश भी जीव आदिका स्पर्शन है इस रीति- है 2 से क्षेत्रके कहनेसे ही स्पर्शनके कहनेका प्रयोजन निकल जाता है फिर स्पर्शनका सूत्रमें जुदा-ग्रहण है करना व्यर्थ है ? सो ठीक नहीं । क्षेत्र शब्द एक देशको विषय करता है और स्पर्शन शब्द सब देशको ६ विषय करनेवाला है । जिसतरह किसीने कहा 'राजा कहां है ?' उचर मिला 'अमुक नगरमें रहता है यहां 0 पर संपूर्ण नगरमें राजा नहीं रहता किंतु नगरके एक देशमें रहता है इसलिए राजाका निवास नगरके 5 हूँ एक देशमें रहनेके कारणनगर क्षेत्र है। इसतिरह किसीने कहा 'तेल कहां है' उचर मिला 'तिलमें है वहां . है पर तेल तिलके एक देशमें नहीं रहता सब देशमें रहता है इसलिए तिलमें सर्वत्र तेलके रहनेके कारण के तेलका तिल स्पर्शन है, इसरीतिसे एक देश और सर्वदेश की अपेक्षा विषय भेद होनेसे क्षेत्रके कहनेसे स्पर्शन नहीं कहा जा सकता। और भी यह बात है २०० त्रैकाल्यगोचरत्वाच॥ १९॥
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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