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________________ ALSO4BBARBA तरा० भाषा, १६३ R BARBASASSA घटत्व आर अघटत्व दोनों स्वरूप वस्तुको यदि घट ही कह दिया जायगा तो अघटका तो ग्रहण होगा नहीं इसलिये वह अवस्तु ही कहा जायगा यदि दोनों स्वरूप वस्तुको अघट कहा जायगा तो घटका ग्रहण होगा नहीं और अघटमात्र वस्तु संसारमें है नहीं इसलिये वह भी अवस्तु कहा जाएगा। है दसरा कोई ऐसा शब्द है नहीं जो स्वस्वरूपकी अपेक्षा घटत्व, परस्वरूपकी अपेक्षा अघटत्व इसतरह दोनों स्वरूप घट वस्तुको एक साथ कहनेवाला हो इसलिये दोनों स्वरूप घट वस्तुको एक साथ कहनेवाला कोई भी शब्द न होनके कारण घटत्व अघटत्व रूप वस्तु एकसाथ कही नहीं जा सकती इसीलिये 'कथंचित् अवक्तव्य' किसीप्रकारसे घट अवाच्य भी है यह चौथा भंग माना गया है। केवल स्वरूपकी विवक्षा रहनेपर घट है और एक साथ स्वरूप और पररूपकी विवक्षा करनेपर एक साथ घटस अघटखको कहनेवाला कोई भी शब्द नहीं इसलिये वह अवक्तव्य भी है इसरीतिसे 'स्याद् घटश्चावक्तव्यश्च कथंचित् घट है कथंचित् वह अवक्तव्य है यह पांचवां भंग माना गया है। , केवल पररूपकी विवक्षा रहने पर 'घट नहीं हैं और स्वरूप और पररूपकी विवक्षासे होनेवाले घटत्व और अघटत्व दोनों स्वरूप घट वस्तुको एक साथ कहनेवाला कोई भी शब्द नहीं इसलिये वह घट अवाच्य भी है इसरीतिसे स्यादघटवावक्तव्यश्च कथंचित् घट नहीं है और कथंचित् अवक्तव्य है यह छठा भंग माना है। क्रमसे स्वस्वरूपकी विवक्षा रहने पर 'घट है' पररूपकी विवक्षा रहने पर 'घट नहीं है' एवं एक साथ स्वस्वरूप पररूपकी विवक्षा रहनेपर घटत्व अघटत्व दोनों स्वरूप घट वस्तुको कहनेवाला कोई भी शब्द न होनेके कारण वह अवक्तव्य भी है इसतरह स्याद् घटवाघटवावक्तव्यश्च-कथंचित् घट है कथंचित् घट नहीं है और कथंचित् अवक्तव्य है यह सातवां भंग माना गया है। " ADMASCAMGACASGANGRAPESAGARMACECTRORESCk
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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