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________________ माध RECREGARA || सम्यग्दर्शन है। नो आगम द्रव्यनिक्षेपमें उदाहरण बतला आये हैं उनमें उपयुक्त अवस्था सवनो आगम | || भाव निक्षेपका विषय समझ लेना चाहिये । यदि शंका की जाय कि 1. नामस्थापनयोरेकत्वं संज्ञाकर्माविशेषादिति चेन्नादरानुगृहाकांक्षित्वात्स्थापनायां ॥ १२॥ . | नामनिक्षेपमें यह करोडींचद है वा हाथीसिंह आदि नाम ही रक्खे जाते हैं स्थापनानिक्षेपमें भी || पार्श्वनाथकी मूर्तिको पार्श्वनाथ वा शांतिनाथकी मूर्तिको शांतिनाथ कहना इत्यादि नाम ही रक्खे | जाते हैं तथा विना नामके स्थापना निक्षेप सिद्ध ही नहीं होता इसलिये जब दोनों जगह नाम रखनेकी || ही प्रधानता है तब नाम निक्षेप ही मानना चाहिये स्थापना निक्षेपकी कोई आवश्यकता नहीं ? सो हा अयुक्त है । किसी पदार्थका बढकर नाम रखनेपर भी उसमें खास पदार्थके समान आदर बुद्धि और || उससे किसी प्रकारके उपकार पानेकी आकांक्षा नहीं होती किंतु स्थापना निक्षेपमें यह बात नहीं, वहां पर खास पदार्थका जैसा आदरसत्कार किया जाता है उसीप्रकारका आदरसत्कार होता है एवं खास || पदार्थसे जिसप्रकारके उकार प्राप्त करनेकी इच्छा रहती है वैसी ही जिसमें स्थापना की गई है उप्तसे || उपकार प्राप्त करनेकी इच्छा रहती है जिसतरह-जिन पुरुषोंके अहंत इंद्र गणेश ईश्वर आदि नाम रख दिये जाते हैं उन पुरुषों में अहंत आदिमें जैसी आदरबुद्धि होती है वैसी नहीं होती और अहंत आदिसे हूँ जैसी उपकार पानेकी इच्छा रहती है वैसी अहंत आदि नामधारी पुरुषोंसे नहीं होती किंतु जिन जिन प्रतिमाओंमें यह स्थापना की जाती है कि-यह भगवान अहंत हैं यह इंद्र यह गणेश और यह ईश्वर हैं, || उनमें अहंत आदिके समान ही आदरसत्कारबुद्धि होती है और अहंत आदिके समान ही उनसे उपकार है All प्राप्त करनेकी इच्छा रहती है इसरीतिसे नाम निक्षेप और स्थापना निक्षेप दोनो जगह यद्यपि नाम - BASICS50SAURUSSINESSURENSIASIS GRAAAAAECREDICADA - १
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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