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________________ SCHEIR-CHAMELIEREGIES रखना समान है तथापि नाम निक्षेपकी अपेक्षा स्थापना निक्षेपमें आदर अनुग्रह आकांक्षाकी विशेषता है है इसलिये दोनों निक्षेपोंका एक निक्षेप नहीं कहा जा सकता। द्रव्यभावयोरेकत्वमव्यतिरेकादिति चेन्न कथंचित्संज्ञास्वालक्षण्यादिभेदात्तहेदसिद्धेः ॥ १३ ॥ द्रव्यसे त्रिकालवी पर्यायोंका समुदाय ग्रहण किया गया है। भाव, द्रव्यकी पर्याय है। क्योंकि ६ नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीनों निक्षेप द्रव्यको विषय करनेवाले हैं और भाव निक्षेप केवल वर्तमान 5 पर्यायको विषय करता है तथा पर्याय और द्रव्यका आपसमें अभेद संबध है। द्रव्य से भिन्न पर्याय नहीं हूँ रह सकतें और पर्यायों से भिन्न द्रव्य नहीं रह सकती इसलिये द्रव्यके कहनेसे ही जब भावका ग्रहण हो हूँ है जायगा तब भाव निक्षेपको जुदा कहना अयुक्त है ? सो ठीक नहीं । जिनके नाम वा लक्षण संख्या है है आदिसे भेद सिद्ध है वे पदार्थ आपसमें भिन्न माने जाते हैं। द्रव्य और भावके व्यवहारमूलक नाम जुदे जुदे हैं । लक्षण भी भिन्न भिन्न हैं । दोनोंके भेद प्रभेद भी जुदे जुदे हैं इसलिये वे दोनों ही जुदे जुदे १ पदार्थ हैं एक नहीं हो सकते। ६ विशेष-आदिके तीन निक्षेप द्रव्यको विषय करनेवाले हैं और भाव निक्षेप पर्यायको विषयं कर६ नेवाला है यह विषय स्वानुभव सिद्ध है और श्लोकवार्तिककारने भी इस विषयमें यह उल्लेख किया है-* नामोक्तं स्थापना द्रव्यं द्रव्याथिकनयार्पणात् । पर्यायार्थार्पणाद् भावस्तैासः सम्यगीरितः॥ ६९॥ पृष्ठ १५३। १। पज्जयविजुदं दव्वं दबविजुत्ता य पज्जया पत्थि । दोण्ई अणण्णमदं भावं समणा परूविति ॥१२ ॥ पंचास्तिकायसमयमाभूत है १३९ पृष्ठ २८ रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला। PESAISISPONSOORSABRISTISAROINS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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