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________________ DISISTERESOLAGANSROSPEAKERESCRETARIA ॐ कथनमें यदि कोई त्रुटि रह गई हो तो उसे शास्त्रानुसार विद्वान् ठीक कर लेवें, इसप्रकार यह द्रव्यनि५ क्षेपका विचार समाप्त हो चुका । अब भावनिक्षेपका विचार किया जाता है __ वर्तमानतत्पर्यायोपलक्षितं द्रव्यं मावः ॥ ८॥स द्विविधः पूर्ववत् ॥९॥ ___इंद्र नामक नामकर्मके उदयसे जो आत्मा इंद्र पर्याय प्राप्त कर चुका है और जिससमय परमैश्वर्यका भोग कर रहा है वह जिसतरह इंद्र कहा जाता है उसीतरह जो द्रव्य, मनुष्य आदि जीवन पर्याय और सम्यग्दर्शनसे जिससमय युक्त है उसीसमय उसे मनुष्य आदि और सम्यग्दर्शन या सम्यग्दर्शनका धारक कहना, अन्य समयमें न कहना, यह भाव निक्षेपका विषय हैं । जिसतरह द्रव्यनिक्षेपके एक आगम द्रव्यनिक्षेप दूसरा नो आगम द्रव्यनिक्षेप इसतरह दो भेद कह आये हैं उसीतरह भाव निक्षेपके भी एक आगम भाव निक्षेप, दूसरा नो आगम भाव निक्षेप ये दो भेद हैं। उनमें - तत्प्राभृतविषयोपयोगाविष्ट आत्मागमः ॥ १०॥ जीवादिपर्यायाविष्टोऽन्यः ॥१२॥ जो आत्मा जिसका निक्षेप किया जारहा है उसके शास्त्रका जानकार है और जिससमय उसके । चितवन आदिमें उपयुक्त है वह आगम भाव निक्षेप है। ऊपर कहा जा चुका है कि शासीय उदाहरण है जीव और सम्यग्दर्शनपर प्रैयकारने निक्षपोंका विषय घटाया है इसलिये जो आत्मा जीवशास्त्रका 26 जानकार है और वर्तमानमें उसके चिंतवन आदिमें उपयुक्त है वह आगम भाव जीवनिक्षेप है इसीतरह जो आत्मा सम्यग्दर्शनके शास्त्रका जानकार है और वर्तमानमें उसके चितवन आदिमें उपयुक्त हैं वह आगम भाव सम्यग्दर्शन है तथा जो आत्मासे भिन्न शरीर आदि मनुष्य आदि जीवन पर्यायसे युक्त है हो वह नो आगम भाव जीव है और जो शरीर आदि सम्पग्दर्शन पर्यायसे युक्त होवह नो आगम भाव RISHABHARACTEGOSSISTANDARBARE १३४
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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