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________________ R Armed तव्यातिरिक्तके जो कर्म और नोकर्म दो भेद बतलाये हैं उनके उदाहरण भी ग्रंथकारने भविष्यत् ||६|| स०रा०६ पर्यायकी अपेक्षा ही दिये हैं परंतु वहांपर भी तीनों कालों की अपेक्षा उदाहरण समझलेने चाहिये क्योंकि १३३|| कर्म नोकर्ममें जिसतरह भविष्यत् पर्यायकी अपेक्षा व्यवहार होता है उसीतरह भूत और वर्तमान पयर्या ॥ योंकी अपेक्षा भी व्यवहार होता है । कर्म और नोकौमें ज्ञायक पुरुषके ही कर्म और नोकर्मों का ग्रहण । है यह ऊपर कह दिया जा चुका है। सामान्यरूपसे तो चेतन अचेतन दोनों प्रकारके पदार्थोंमें भूत भविष्यत् और वर्तमान तीनों PI कालोंकी अपेक्षा अनुपस्थित पदार्थोंको वर्तमानमें उपस्थितरूपसे कहना द्रव्यनिक्षेपका विषय है परंतु |आगम नो आगम आदि जो भी भेद कहे गये हैं वे कुछ विषयकी विशेषता और स्पष्टताकोलये कहे ७ गये हैं । यद्यपि ग्रंथकारको प्रसिद्ध उदाहरणोंका अवलंबन कर द्रव्यनिक्षेपका स्वरूप कहना था परंतु 81 ऊपरसे प्रकरण जीव आदि तत्त्व वा सम्यग्दर्शनका चला आरहा है इसलिये निक्षेपोंमें उन्हींको उदाह ||४| (रण रख निक्षेपोंका विषय घटाया है। अच्छीतरह द्रव्यानिक्षेपका मनन करनेसे द्रव्यानिक्षेपके लौकिक और शास्त्रीय दोनों प्रकारके उदाहरण स्पष्टरूपसे अनुभवमें आजाते हैं। नैगमनय और द्रव्यनिक्षेपका विषय समान नहीं है। द्रव्यनिक्षेपका विषय खुलासारूपसे कहीं भी हमारे देखनेमें नहीं आया इसलिये श्लोकवार्तिकालंकारके आधारसे कुछ मनन कर यहां उसका कुछ विशदस्वरूप लिखा गया है । इस १नय ज्ञानरूप पडता है और निक्षेप पदार्थोंका व्यवहार प्रकार है। इसलिये नैगमनय और द्रव्यनिक्षेपमें विषय-विषयी सम्बन्ध है । नय विषयी है, निक्षेप विषय है। GURUGREEKRECEBAREDGEOGREERSANEMALECHER ASAIDARA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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