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________________ KAKK सम्यग्दर्शन पर चारो निक्षेपोंको घटाया है इसलिये जीव की अपेक्षा द्रव्य निक्षेपके आगमद्रव्य जीव और आगमद्रव्य जीव ये दो भेद हैं । सम्यग्दर्शन की अपेक्षा आगम सम्यग्दर्शन और नो आगम सम्यदर्शन ये दो भेद हैं । जिस पदार्थका निक्षेप किया जाय उस पदार्थको वर्णन करनेवाले शास्त्रका जान कार तो हो परंतु जिससमय उसके चिंतवन आदिमें उपयोगरहित हो ऐसी आत्मा आगमद्रव्यनिक्षेप कहा जाता है । यह सामान्यरूप से आगमद्रव्यनिक्षेपका लक्षण है । तथा विशेषरूपसे - जो पुरुष जीवन पर्याय के वर्णन करनेवाले शास्त्रका जानकार तो है परंतु जिससमय उसके चिंतवन आदिमें उपयोगरहित वह आगमद्रव्य जीव है और जो पुरुष सम्यग्दर्शनको वर्णन करनेवाले शास्त्रका जानकार तो है परंतु जिससमय उसके चिंतवन आदिमें उपयोगरहित है वह आगमद्रव्य सम्यग्दर्शन है । नो आगमद्रव्य तीन प्रकार है । ज्ञायकशरीर, भावि और तद्व्यतिरिक्त । जो ज्ञाताका शरीर है वह ज्ञायकशरीर कहा जाता है वह त्रिकालगोचर ग्रहण किया गया है अर्थात् उसके भूत भविष्यत् और वर्तमान ये तीन भेद हैं। जो शरीर मनुष्य आदि जीवनपर्याय और सम्यग्दर्शन के शास्त्रका जानकार है परंतु उन्हें पहिले ही प्राप्त कर चुका और अवधि पूर्ण हो जानेपर वे छूट भी गये तब भी उस शरीर को मनुष्य वा सम्यग्दर्शनका धारक कह देना भूतज्ञायक शरीर नो आगमद्रव्य है । जो शरीर मनुष्य आदि जीवन पर्याय और सम्यग्दर्शन के शास्त्रका जानकार है परंतु उन्हें आगे जाकर प्राप्त करेगा तब भी उसे इस समय मनुष्य आदि वा सम्यग्दर्शनका धारक कहना भविष्यत् नो आगमज्ञायक शरीर है एवं जो शरीर मनुष्य आदि जीवन पर्याय और सम्यग्दर्शनका जानकार है परंतु उन्हें प्राप्त कर रहा है पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर सका है तो भी उसे मनुष्य वा सम्यग्दर्शनका धारक कह देना वह वर्तमान नोआगम ज्ञायक शरीर है । भाषा १२६
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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