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________________ छ Y २०रा० RICALISISCH .. जो शरीर मनुष्य आदि जीवन पर्याय वा सम्यग्दर्शन पर्याय प्राप्तिके सम्मुख है, आगे जाकर || || प्राप्त करेगा तब भी उसे इस समय मनुष्य आदि कहना वा सम्यग्दर्शनका धारक कहना भावि नो आ-|| | गम (जीव वा सम्यग्दर्शन) नामका दूसरा नो आगम द्रव्यका भेद है। तद्व्यतिरिक्त नो आगम द्रव्य PI के दो भेद हैं एक कर्म दूसरा नो कर्म । जो मनुष्य आदि नाम कर्मकी वर्गणाआगे मनुष्य आदि पर्याय रूप परिणत होनेवाली हों उन वर्गणाओंको अभीसे मनुष्य आदि कह देना तद्व्यतिरिक्त नामक नो || आगम द्रव्यका 'मनुष्य आदि जीवकर्म' नामका पहिला भेद है इसी तरह जो दर्शनमोहनीयकी वर्गणा आगे उपशम क्षय वा क्षयोपशमरूप परिणत होनेवाली हैं उन्हें इसी समय उपशम आदि स्वरूप है देना तव्यतिरिक्त नो आगम द्रव्यका सम्यग्दर्शन' कर्म नामका पहिला भेद है। तथा आहार आदि | नोकर्म जिनपर मनुष्य आदिके शरीरकी स्थिति निर्भर है और जो आगे जाकर मनुष्य आदिके शरीर | रूप परिणत होनेवाले हैं उनको इसी समय मनुष्य आदि कह देना तद्व्यतिरिक्त नो आगम द्रव्यका | 'मनुष्य आदि जीव' नोकर्म नामका दूसरा भेद है। इसीतरह उपदेश, जिनेंद्रदर्शन, मुनिदर्शन आदि जो दर्शनमोहनीयके क्षय आदिमें कारण हैं इस समय उन्हींको सम्यग्दर्शन कह देना यह तद्व्यतिरिक्त नो|६|| आगम द्रव्यका ' सम्यग्दर्शन' नोकर्म नामका दुसरा भेद है। जीवन सामान्यकी अपेक्षा नो आगम | द्रव्य नहीं है क्योंकि जीवन सामान्य सर्वदा विद्यमान है उसमें भूत भावि भेद नहीं हो सकते इसलिये है। मनुष्य आदि विशेष जीवन पर्यायोंका अवलम्बन लिया गया है। आगमद्रव्यमें आत्माका ग्रहण किया गया है। नो आगमद्रव्यमें उसके परिकर शरीर कर्म वर्गणा आदिका ग्रहण है। इतना विशेष समझ लेना || | चाहिये। द्र १२७ GEORGE GRIGALOGLIST EAAWASAAL -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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