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खरा०
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|| वाली पर्यायोंके बिना सिद्ध ही नहीं हो सकती इसलिये जिसतरह गधेके सींग कोई पदार्थ नहीं उसतरह || प्रमाणबाधित अकेली आगामी कालमें होनेवाली पर्यायके ही माने जानेपर द्रव्य भी कोई पदार्थ सिद्ध || है नहीं हो सकता इसलिये निक्षेप प्रकरणमें जो यह द्रव्यका लक्षण किया गया है कि 'आगामी कालमें | होनेवाली पर्यायको वर्तमानमें मान लेना द्रव्य हैं। वह द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे समझ लेना चाहिये | || और वहां द्रव्यकी तीनों कालकी पर्यायोंका ग्रहण करना चाहिये । इसरीतिसे आगामी होने के कारण, | अनुपस्थितको जिसतरह द्रव्यनिक्षेपका विषय माना है उसीतरह वीत जानेसे अनुपस्थित वा वर्तमानको | अपेक्षासे अनुपस्थितको भी द्रव्यनिक्षेपका विषय मानना चाहिये। |. सर्वार्थसिद्धिमें भी नामस्थापनेत्यादि सूत्रमें द्रव्य शब्दका जो यह 'गुणैर्दोध्यते गुणान् द्रोष्यतीति | sil वा द्रव्यं' व्युत्पचि की है उसकी टिप्पणीमें यह लिखा है 'गुणैर्गुणान्वा द्रुतं गतं प्राप्तमिति द्रव्यमित्यष्यदाधिकपाठः पुस्तकांतरे, दृश्यते' अर्थात् गुणोंसे जो प्राप्त किया गया वा गुणोंको प्राप्त हुआ वह द्रव्य है है| यह भी अधिक-पाठ दूसरी पुस्तकमें दीख पडता है, इससे भी यह सिद्ध है कि बीत जानेसे अनुपस्थित
भी द्रव्यनिक्षेपका ही विषय है इसप्रकार इन दो आगम प्रमाणों एवं उपर्युक्त युक्तिबलसे यह बात सिद्ध ना हो चुकी कि तीनों कालकी अपेक्षा अनुपस्थित द्रव्यनिक्षेपका विषय है। केवल आगामीकालकी अपेक्षा | अनुपस्थित ही नहीं।
तद् द्विविधमागमनोआगमभेदात् ॥५॥ अनुपयुक्तः प्राभृतज्ञाय्यात्मागमः ॥६॥
इतरत्रिविधं ज्ञायकशरीर-भावि-तव्यतिरिक्तभेदात् ॥७॥ .. .. . · · द्रव्यनिक्षेपके दो भेद हैं एक आगमद्रव्यनिक्षेप, दूसरा नोआगमद्रव्यनिक्षेप । ग्रंथकारने जीव और
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