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________________ 6 विशेष-स्थापना के दो भेद माने हैं एक तदाकार स्थापना जिसे सद्भाव स्थापना भी कहते हैं और दूसरा अतदाकारस्थापना जिसका दूसरा नाम असद्भावस्थापना भी है । जिस पदार्थका जो आकार है वैसी ही मूर्ति तयार कर उस पदार्थ की उस मूर्ति में स्थापना करना तदाकार स्थापना कही जाती है और पदार्थका जैसा आकार है उससे अन्य आकार के पदार्थ में उसकी स्थापना करना अतदाकार स्थापना है । ऋषभदेव आदिको प्रतिमाओं में ऋषभदेव आदिकी स्थापना तदाकारस्थापना है और चावल आदिमें ऋषभदेव वा सिद्धों की स्थापना अतदाकार स्थापना कही जाती है । नाम और स्थापनाका भेद स्वयं वार्तिककार कहेंगे । अनागतपरिणामावशेषं प्रति गृहीताभिमुख्यं द्रेव्यं ॥ ३ ॥ जो पर्याय आगे जाकर प्रकट होनेवाली है। वर्तमानमें नहीं, किंतु उसके होनेकी योग्यता है उस पर्यायको वर्तमान में मान लेना द्रव्यनिक्षेप है । अथवा अतद्भावं वा ॥ ४ ॥ जिस पदार्थ की जो अवस्था होनेवाली है उसकी पूर्व अवस्थाको ही होनेवाली अवस्था कह डालना निक्षेप कहा जाता है जिस तरह जिस काष्ठ से इंद्रकी प्रतिमा तयार की जायगी उस काष्ठको ही इंद्र कह दिया जाता है । उसी तरह जिस जीवमें आगे जीवपर्याय प्रकट होनेवाली है उसको पूर्वपर्याय में ही जीव कह दिया जाता है तथा जिसमें आगे जाकर सम्यग्दर्शन पर्याय प्रगट होनेवाली है उसके पहिले ही सम्यग्दर्शन कह दिया जाता है यह सब द्रव्यनिक्षेपका विषय है । यदि यहांपर यह शंका की १ यह उपलक्षण है। भावीपर्यायके समान भूतपर्याय भी द्रव्यनिक्षेपका विषय है, यह बात ग्रंथांतरोंमें विवेचित की गई है। भाषा १२२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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