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भाषा
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. विशेष-जो मनुष्य गौरवर्णका धारक है उसे गौर कहना यह गुणकी अपेक्षा नाम है । मनुष्यको मनुष्य, देवको देव, गौको गौ, घोडेको घोडा, हाथीको हाथी कहना ये जातिकी अपेक्षा नाम हैं। जिस के हाथमें दंड हो उसे दंडी कहना, जो कुंडल पहिने हो उसे कुंडली कहना ये द्रव्यलक्षणकी अपेक्षा नाम हैं। पूजन करते समय पूजक कहना, नृत्य करते समय नर्तक कहना ये क्रियाकी अपेक्षा नाम हैं। इन नामोंमें गुण आदिकी अपेक्षा है । गुण आदिके द्वारा ही इन नामोंकी उत्पत्ति हुई है इसलिये अन्वर्थ | नाम हैं, नामनिक्षेपमें इनका ग्रहण नहीं किया जा सकता किंतु जहां गुण जाति द्रव्य क्रिया कोई भी | वात न पाई जाय और माता पिताके लाडसे रत्नकुमार करोडीचंद हाथीसिंह आदि नाम रख दिये | जाय वह सब नामनिक्षेप है क्योंकि केवल व्यवहारके लिये वहांपर नाम रक्खे गये हैं।
सोऽयमित्यभिसम्बन्धत्वेनान्यस्य व्यवस्थापनामात्र र | एक पदार्थकी दूसरे पदार्थमें यह वह है' इस रूंपसे. स्थापना कर देना स्थापना निक्षेप है जिसप्रकार - इन्द्र के आकारकी मूर्ति बनाकर उसमें इस रूपसे स्थापना करना कि जो परम ऐश्वर्यका भोगनेवाला | इंद्राणीका स्वामी इन्द्र है 'वह यह है' स्थापनानिक्षप कहा जाता है और इंद्रके रहते जैसी भक्ति श्रद्धा | होनी चाहिये वैसी ही उस मूर्तिके अंदर होने लगती है उसी तरह किसी पुतलीमें यह जीव है वा किसी | क्रियामें यह सम्यग्दर्शन है अथवा सतरंजमें लकडीके बने प्यादोंमें यह हाथी है यह घोडा और ऊंट है | इसप्रकारकी स्थापना करना स्थापनानिक्षेप है।
१। सोऽयमित्यक्षकाष्ठादौ सम्बन्धेनात्मवस्तुंन । यद् व्यवस्थापनामात्र स्थापना साभिधीयते ॥ ११ ॥ अध्याय १ तत्वार्थसार । __भाविनः परिणामस्य यत्प्राप्ति प्रति कस्यचित् । स्याद् गृहीतामिमुख्यं हि तद् द्रव्यं ब्रुवते जनाः ॥१२॥ अध्याय १ तत्वार्थ
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