________________
मय
व०रा० माषा
१२२१
ISGA
FASHISHASTRIPASHARELASAHABAR
अर्थ घटमें रहनेवाला जो अभाव उसकी प्रतियोगिता है अर्थात् घटमें रहनेवाले पटके अभावका प्रति. | योगी पर है और वह प्रतियोगिता पटका धर्म है इस रूपसे जब पटकी नास्तिता घटमें नहीं है तब घट पटकी अपेक्षा नास्तित्वस्वरूप नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं । जिसप्रकार घटका अभाव भूतलस्वरूप माना जाता है इसलिए वह भूतलका ही धर्म है उसीप्रकार पटरूपका अभाव भी घटस्वरूप है इसलिए वह पटरूपाभाव घटका ही धर्म है । इस रूपसे जब पटाभाव घटका ही नास्तित्वधर्म सिद्ध हो चुका तब घट भी अस्तित्वनास्तित्वस्वरूप सिद्ध हो गया। यहांपर यह शंका न करनी चाहिये कि धर्मपदार्थ धर्माते जुदा रहता है, अस्तित्व नास्तित्वको घटका स्वरूप ही माना है तब वे धर्म कैसे हो सकते हैं ? क्योंकि यहांपर कथंचित् तादात्म्यलक्षण संबंधसे संबंधी अस्तित्व नास्तित्व आदिको ही धर्म माना है इसलिए अभेद रहनेपर भी अस्तित्व नास्तित्व आदिको धर्म कहने में कोई आपचि नहीं। यदि यहांपर फिर यह शंका उठाई जाय कि
जिसप्रकार 'भूतलमें घट नहीं है। यह वाक्य घटके अभावका प्रतिपादन करनेवाला है इसलिए यहां पर 'भूतले घटो नास्ति' अर्थात् 'भूतलमें घट नहीं है' ऐसा ही प्रयोग होता है किंतु 'भूतल नहीं है" ऐसा प्रयोग नहीं होता उसीप्रकार घटमें पटाभावके प्रतिपादन करनेपर यद्यपि पटाभाव घटस्वरूप ही है तथापि 'स्यान्नास्त्येव घट: इस वाक्यके स्थानपर पटोनास्ति' अर्थात् पट नहीं है इसीवाक्यका प्रयोग होगा क्योंकि यह नियम है जो वाक्य अभावको जनानेवाला है उप्तमें प्रतियोगीकी प्रधानता रहती है अर्थात् जिस | पदार्थका अभाव किया जाता है उसी पदार्थकी प्रधानता होती है, घटमें पटका अभाव किया जाता है इसलिए उस पटाभावके प्रतियोगी पट हीकी प्रधानता रहेगी, घटकी नहीं। जिसप्रकार-यद्यपि घटका
R PRESGP,
१५४