SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 अध्याय AREEWA प्रागभाव कपालस्वरूप है तो भी जिससमय कपाल बन चुका है उससमय घट होगा' यही प्रागभावको कहनेवाला प्रयोग दीख पडता है, कपाल होगा ऐसा प्रयोग कभी नहीं दीख पडता अथवा घटके नाशके उचरकालमें उसके अवयवस्वरूप कपालोके देखनेपर 'घट नष्ट हुआ' यही प्रयोग होता है, कपाल नष्ट ६ हआ यह प्रयोग नहीं होता। इसप्रकार घटमें पटके अभाव कहनेपर प्रतियोगी पटकी ही प्रधानता रहने 3 पर 'पटो नास्ति' यही प्रयोग होगा। इस रीतिसे अस्तित्व नास्तित्व दोनों स्वरूप घटके सिद्ध रहनेपर है ₹ भी 'स्यादस्त्येव घटः, स्यान्नास्त्येव घटः" इन प्रयोगोंकी जगहपर 'घटोऽस्ति पटो नास्ति' ऐसे ही प्रयोग है हूँ होंगे अर्थात् यहांपर दूसरे प्रयोगोंमें घटके अभावकी जगहपर पटका अभाव ही कहा जायगा क्योंकि जो वाक्य पटके अभावका प्रतिपादन करनेवाला है उसकी प्रवृत्तिका यही प्रकार है ? इसका समाधान इसप्रकार है___अस्तित्व नास्तित्व दोनों स्वरूप घटके माननेपर हमारी (जैनोंकी) इष्टसिद्धि हो चुकी इसलिए 'अस्तित्व नास्तित्व दोनों स्वरूप है वा नहीं है' इत्यादि जो विवाद था उसकी भी इतिश्री हो गई, अब रही शब्दप्रयोगकी बात अर्थात् घटो नास्ति इसकी जगह पटो नास्ति होना चाहिये, यह बात, सो उसकी है व्यवस्था पूर्व पूर्व प्रयोगके अनुसार मानी है । अर्थात जिस रूपसे प्रयोग प्रचलित है उसे उसीप्रकारसे है मानना पडता है। खुलासा इसप्रकार है___'देवदत्तः पचति' अर्थात् देवदत्त पाक करता है ऐसा प्रचालित प्रयोग है । यहाँपर देवदत्च पदका अर्थ उसका शरीर लिया जायगा वा आत्मा अथवा शरीरविशिष्ट आत्मा लिया जायगा ? यदि प्रथम पक्ष देवदत्वका शरीर लिया जायगा तो देवदचका शरीर पाक करता है, यह अयुक्त प्रयोग मानना FRESHERRIGANGRESSUE 1956 ९२२२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy