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अध्याय
भाषा
११८७
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संबंध और संसर्गका अर्थ एक ही है इसलिए यहां दोनों से एकका प्रयोग करना चाहिये ? सो ठीक नहीं। | कथंचित् तादात्म्यस्वरूप संबंधके माननेपर अभेदकी प्रधानता और भेदका गौणपना रहता है इसलिए जहाँपर अभेद प्रधान और भेद गौण होगा वहांपर संबंध समझना चाहिये और संसर्गमें भेद प्रधान और अभेद गौण है इसलिए जहांपर भेद प्रधान और अभेद गौण हो वहांपर संबंध समझ लेना चाहिये।
तथा-दोगुणोंका एक कालमें एक साथ कहनेवाला कोई एक शब्द नहीं है। यदि यह कहाजायगा कि एक कालमें एक साथ दो गुणोंका प्रतिपादन करनेवाला एक शब्द है तब सत् शब्द जिसप्रकार स्वार्थ 'अपने अस्तित्वरूप अर्थका प्रतिपादन करता है उसप्रकार वह स्वार्थसे विरुद्ध असत्रूप अर्थका भी प्रतिपादन करेगा परंतु सत् शब्द अस्तित्व नास्तित्व दोनोंका एक साथ प्रतिपादन करता हो ऐसी लोकमें प्रतीति नहीं है क्योंकि दोनों ही शब्द एकांत यक्षमें विशेष शब्द माने गये हैं। इसतिसे अस्तित्व और नास्तित्वका वाचक कोई एक शब्द न होनेके कारण उन दोनोंका अभेद नहीं कहा जा सकता इसप्रकार यह शब्दकृत अभेदका निषेध है । इसप्रकार ऊपर कहे गये काल आदिकी अपेक्षा अस्तित्व और नास्तित्वका एक जगह एक साथ रहना नहीं हो सकता तथा उन दोनोंके स्वरूपका एक कालमें एक साथ कहने वाला एक शब्द भी उपलब्ध नहीं इसलिए अस्तित्व नास्तित्वकी युगपत् विवक्षा होनेपर और एक साथ || उन दोनोंको कहनेवाला कोई एक शब्द न होनेपर आत्मा अवक्तव्य है । अथवा
जहाँपर एक ही वस्तुमें मुख्यरूपसे समान शक्ति के धारक दो घाँका कहना हो वहांपर आपसमें || एक दुसरेका प्रतिबंधक होनेसे दोनोंमेंसे एकका भी उल्लेख होगा नहीं उस समय प्रत्यक्षविरोध और
ig १९८७. १-सप्तभंगीतरंगिणी पृष्ठ संख्या ३३ ।