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________________ अध्याय ANGRESOURISTRUCBREAKEELCASRIDROINE दुसरे देशमें नास्तित्वका उपकार इसतरह एकही गुणीमें अस्तित्व और नास्तित्वका सहभाव नहीं हो सकता। सहभावके न होनेपर उन दोनोंका अभेद भी नहीं हो सकता और जब उन दोनोंका अभेद नहीं तब उनको एकसाथ कहनेवाला कोई एक शब्द भी नहीं हो सकता। यह गुणिदेशकी अपेक्षा अस्तित्व नास्तित्वके अभेदका निषेध है। तथा-जिसप्रकार शुक्ल और कृष्ण गुण कर (चितकवरा) रंगसे भिन्न है और आपसमें भी अपने स्वरूपसे जुदे जुदे हैं । असंसृष्ट-आपसमें मिले हुए भी नहीं हैं एवं शुक्लत्व रूपसे है शुक्लका और कृष्णत्वरूपसे कृष्णका इसप्रकार दोनोंका स्वरूप जुदा जुदा निश्चित है इसलिये वे एक है से पदार्थमें एक साथ रहनेके लिये समर्थ नहीं उसीप्रकार आस्तित्व नास्तित्व गुण भी आपसमें जुदे जुदे हैं 2 एवं आस्तित्वस्वरूपसे अस्तित्वका और नास्तित्वस्वरूपसे नास्तित्वका इत्यादिरूपसे आस्तित्व आदिका ॐ स्वरूप भी भिन्न भिन्न रूपसे निश्चित है इसलिये एकांतपक्षमें भिन्न भिन्न रूपसे प्रत्येकका स्वरूप निश्चित ६ होनेसे उनका मिला हुआ अखण्ड अनेकस्वरूप नहीं है इसरीतिसे अस्तित्व नास्तित्व के साथ संसर्गका ६ ६ भेद रहनेसे दोनोंका एकसाथ प्रतिपादन नहीं हो सकता क्योंकि पदार्थमें वैमे होने की सामर्थ्य नहीं अर्थात् हूँ जिनके संसर्गोंका भेद हो ऐसे पदार्थों का एकसाथ प्रतिपादन होना असंभव है तथा जिसका एकरूपमे हूँ प्रतिपादन होता हो उसके दो संबंधोंका होना भी असंभव है इसलिये जब आस्तित्व नास्तित्वके संसर्गोंका भेद है तब उनका भी आपसमें अभेद नहीं हो सकता एवं जब उनका आपसमें अभेद निश्रित नहीं तब एक कालमें एकशब्द उन दोनोंको प्रतिपादन नहीं कर सकता इसप्रकार यह संसर्गकृत अस्तित्व नास्तित्वके अभेदका निषेध है। विशेष—यहांपर संबंध और संसर्ग दोनोंके द्वारा जायमान अभेदका निषेध कहा गया है. परंतु ORRECASIRected । ११८
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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