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________________ R तरा० भाषा अध्याय उपकारके द्वारा भी गुणों का अभेद नहीं क्योंकि नीले वा लाल आदिरंगोंसे रंग जाना यही गुणोंका द्रव्यके ऊपर उपकार है। वे नील लाल आदि रंग आपसमें अपने अपने स्वरूपके भेदसे भिन्न भिन्न हैं। | जबतक उन नौल आदिमें नीलत रक्तत्व आदि रूप है एवं जबतक उनकी नील नीलतर नीलतम आदि अवस्थाएं है तबतक ही वे द्रव्यको रंजायमान करते रहते हैं इसलिये जब नील आदिकी नील नीलतर आदि अवस्था भिन्न भिन्न हैं तब उनके द्वारा होनेवाला द्रव्यके ऊपर उपकार भीभिन्न र है इसरीतिसे गुणोंसे जायमान उपकारके भिन्न भिन्न होनेसे अस्तित्व और नास्तित्वका भी भेद होगा तब जोपदार्थ अस्तित्वसे | रंजायमान होगा वह सत् कहा जायगा और जो नास्तित्वमे रंजायमान होगा वह असत् कहा जायगा। एवं जब उपकारके भेदसे अस्तित्व नास्तित्वका अभेद न सिद्ध होगा तब उन दोनोंका वाचक कोई एक शब्द | | नहीं हो सकता। यह उपकारकृत अभेदका निषेध है । तथा यदि गुणीके एकदेशमें गुणोंक द्वारा उपकार ना होता हो तब तो एकदेशमें अस्तित्वके द्वारा उपकार और एकदेशमें नास्तित्व के द्वारा उपकार इसतरह भिन्न भिन्न देशकी अपेक्षा एक ही गुणोंमें दोनोंका रहना निश्चित होनेपर अस्तित्व नास्तित्वका एक ही | पदार्थमें सहभाव अर्थात् साथरहना कहा जा सकता है परंतु नील आदि समस्त गुण साकल्येन द्रव्य के उप-12 | कारक हैं और पट आदिद्रव्य साकल्येन उनसे रंजायमान होती हैं एकदेश रूपसे नहीं क्योंकि 'गुण उपाय | कारको गुणी उपकार्यः' गुण साकल्येन द्रव्यका उपकारक होता है, और गुणी साकल्येन द्रव्यका उपकार्य II होता है, ऐसा माना गया है, तथा गुण और गुणीका एकदेश हो भी नहीं सकता जिससे गुणको साकल्येन | उपकारक मानने वा गुणीको साकल्येन उपकार्य माननेमें किसीप्रकारकी बाधा हो सके इसरीतिसे जब यह बात सिद्ध हो चुकी कि गुणीका एकदेश सिद्ध नहीं तब उसके एकदेशमें आन्तत्वका उपकार और ROSPECIPEDIRECECAMSASARDPURANCE ASGASHIKAHASRAMILASASHNESS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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