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अध्याय
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भी नहीं हो सकता। इसप्रकार यह अर्थकृत अभेदका निषेध है, संबंधके द्वारा भी गुणोंका आपसमें 5 अभेद नहीं हो सकता क्योंकि जिसप्रकार छत्र और देवदच एवं दंड और देवदत्तका संबंध आपसमें जुदा है जुदा है क्योंकि छत्र और देवदत्त एवं दंड और देवदच रूपसंबंधी जुदे जुदे हैं उसीप्रकार अस्तित्व हूँ नास्तित्वका संबंध भी आत्माके साथ जुदा जुदा है क्योंकि यहांपर भी अस्तित्व आत्मा और नास्तित्व है आत्मारूप संबंधी जुदै जुदे हैं इसरीतिसे आपसमें संबंधके भेदसे अस्तित्व नास्तत्वका भेद होनेसे उन है दोनोंका अभेद नहीं हो सकता एवं संबंध के भेदसे जब उन दोनोंका भेद है तब उन दोनोंका प्रतिपादन * करनेवाला कोई एक शब्द भी नहीं हो सकता । शंका
छत्र देवदच वा दंड देवदचका जो उदाहरण दिया गया है वह संयोगविषयक संबंधका है परन्तुः | 8 अस्तित्व नास्तित्वका जो आत्माके साथ संबंध है वह समवाय है और वह नित्य एवं एक माना है किंतु
संयोगसंबंध अनेक और अनित्य है इसलिये संयोगसंबंध भिन्न भिन्न माना जा सकता है समवाय संबंध भिन्न भिन्न नहीं हो सकता। तथा अस्तित्व नास्तित्वका आत्माके साथ समवायसंबंध मानने और उनके एक होनेसे अस्तित्व नास्तित्वका अभेद संबंध हो सकता है कोई दोष नहीं । सो ठीक नहीं। जिप्तप्रकार
संयोगसंबंधका अभिधान और प्रतीति भिन्न २ है इसलिये उसको अनेकप्रकारका माना गया है उसीप्रकार 2 समवायसंबंघका अभियान आर प्रतीति भिन्न भिन्न है इसलिये वह भी अनेकप्रकारका है इसतिसे जुदे र रूपसे अभिधान और प्रतीतिका कारण होनेसे जब समवाय पदार्थ भी अनेक है तब संबंधके भेदसे अस्तित्व | नास्तित्वका अभेद नहीं हो सकता।इसरीतिसे यह संबंधकृत अस्तित्व नास्तित्वके अभेदका निषेष है तथा-18 १-संयोग भी संवन्ध है और समवाय भी संबन्ध है दोनों के नाम एकसे हैं।
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