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अध्याय
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वस्तुको निर्गुणपना प्राप्त होगा इस रोतिसे जहांपर आस्तित्व नास्तित्व दोनों गुणोंकी मुख्यरूपसे विवक्षा है। हो और एक साथ एक कालमें उनका प्रतिपादन न हो सके वहांपर अवक्तव्य भंग कहना पडता है इस- है। प्रकार जहांपर आत्मामें अस्तित्व नास्तित्व गुणोंकी मुख्यरूपसे विवक्षा है परंतु एक शब्दसे दोनों स्वरूप आत्माका प्रतिपादन नहीं हो सकता वहांपर आत्मा अवक्तव्य कहा जाता है।
विशेष-सप्तभंगीतरंगिणीमें काल आदिके द्वारा अभेद और भेदका निरूपण इसप्रकार किया गया है। वहांपर अभेदका प्रतिपादन इसप्रकार है
काल आत्मरूप अर्थ संबंध उपकार गुणिदेश संसर्ग और शब्द ये आठ अभेद और भेदके नियामक हैं। अभेदपक्षमें 'स्यादस्त्येव घटः' यहांपर जिस कालमें घटमें अस्तित्व है उसी कालमें और भी अनंते धर्म हैं इस रीतिसे अस्तित्व और धर्मोंका एक ही कालमें एक ही अधिकरणमें रहने के कारण कालसे अभेद है। घटका गुणपना जो अस्तित्वका स्वरूप है वही शेष अनंत धर्मोंका भी है इस रीतिसे । | अस्तित्व आदि धर्मोंका समान स्वरूप होनेसे आत्मस्वरूपसे अभेद है। जो घटरूप पदार्थ अस्तित्वका ६ आधार है वही अन्य अनंते धौका भी आधार है इस रीतिसे अनेक धर्मों का एक ही आधार होनेसे हूँ अर्थसे अभेदवृति है । जो ही कथंचिचादात्म्यस्वरूप संबंध अस्तित्वका है वही अन्य अनंत धर्मोंका ६
भी है इस रीतिसे अस्तित्व आदि धर्मोंका समान संबंध होनेसे संबंधसे अभेदवृत्ति है । उपकारका अर्थ है अपने स्वरूप परिणमावना है अर्थात् अपनेसे विशिष्टता उत्पन्न कर देना है । जिसतरह घटको नीला है वा लाल आदि बनादेना अथवा नील आदि विशिष्ट कह देना, यह नील रक्त आदि गुणोंका घटके है। १९८५ ऊपर उपकार है । वास्तवमें जहांपर धर्मका विशेषणरूपसे भान हो और धर्मीका विशेष्यरूपसे ज्ञान हो l
-SANSARAKASHANGABRIESWARG