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__ जिस जीवने मनुष्यपर्याय प्राप्त कर रक्खी है वह निजद्रव्य निजक्षेत्र निजकाल और निजभावकी 5 अपेक्षा ही है इतरथा अर्थात् परद्रव्य-परक्षेत्र परकाल और परभावकी अपेक्षा नहीं है यदि मनुष्यजीवका. अध्याच है अस्तित्व परद्रव्य आदिकी अपेक्षा भी माना जायगा तो मनुष्य ही नहीं हो सकता क्योंकि नियमित हू द्रव्य क्षेत्र काल और भावके द्वारा तो मनुष्यका अस्तित्व माना नहीं जाता इसलिये गधेके सींगके है समान उसका होना असंभव है। यदि अनियमित द्रव्य आदिसे उसका अस्तित्व माना जायगा तो है मनुष्यके सर्वथा न होनेपर सामान्य पदार्थ ही उत्पन्न होगा इसलिये जिसप्रकार अनियमित द्रव्य आदि है
रूपसे होनेसे महासामान्य पदार्थ; मनुष्य नहीं कहा जाता उसीप्रकार सामान्य पदार्थ भी मनुष्य नहीं । कहा जासकेगा। खुलासा इसप्रकार है
जिसतरह मनुष्य जीव द्रव्यकी अपेक्षा माना जाता है उसतरह यदि वह पुद्गल आदि द्रव्यकी अपेक्षा भी माना जायगा तो जिसप्रकार पुद्गल आदि समस्त द्रव्योंमें रहनेवालाद्रव्यत्व धर्म मनुष्य नहीं कहा % जा सकता उसीप्रकार पुद्गल आदि द्रव्यकी अपेक्षा मनुष्यपना भी नहीं कहा जा सकता। तथा- छ जिसतरह इस स्थानकी अपेक्षा मनुष्यका होना माना जाता है उसतरह विरुद्ध दिशाके अंतके किसी है अनियत शानकी अपेक्षा भी उसका होना मानाजायगा तोजिसप्रकार विरुद्ध दिशाओंके अंतके अनि- " यत स्थानमें रहने के कारण आकाश पदार्थ मनुष्य नहीं माना जाता उसीप्रकार विरुद्ध अनियत स्थानमें रहनेवाला भी पदार्थ मनुष्य नहीं कहा जा सकता। तथा-जिसतरह वर्तमानकालकी अपेक्षा मनुष्यका अस्तित्व है उसतरह यदि अतीत और अनागतकालकी अपेक्षा भी उसका अस्तित्व माना जायगा तो जिसप्रकार भूत भविष्यत् वर्तमान तीनों कालोंमें रहनेवाला जीवत्व सामान्य मनुष्य नहीं कहा जाता
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