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________________ || भी माना जायगा तो जैसे विरुद्ध दिशाके अंतके अनियत स्थानका आकाश घट नहीं कहा जाता वैसे पापा || वह भी घट नहीं कहा जायगा तथा जैसे वर्तमानकालकी अपेक्षा घट है वैसे यदि अतिकालमें रहनेवाली ||| अध्याय शिवक आदि घटको पर्याय और भविष्यत्कालमें होनेवाली कपाल आदि पर्यायकी अपेक्षा भी घट ११६९ ॥ & माना जायगा तो जिसप्रकार सर्वकालमें रहनेवाली मिट्टी घट नहीं कही जा सकती उसीप्रकार त्रिकाल| वर्ती भी घट नहीं कहा जा सकता तथा जिसतरह इस देश और इस कालके संबंधसे घटका हमें प्रत्यक्ष | हो रहा है उसतरह अतीत अनागत काल और अन्य देशके संबंधसे भी घटका प्रत्यक्ष माना जायगा | । तो उस अतीत अनागत काल और अन्य देशमें रहनेवाले घटका भी हमें प्रत्यक्ष होना चाहिये। तथा | जिसप्रकार इस देश और इस काल संबंधी घटमें जल आदिका धारण, ले आना और ले जाना आदि | होता है उसप्रकार अतीत अनागतकाल और अन्य देशवर्ती घटसे भी होना चाहिये परंतु वैसा होता | नहीं इसलिए अतीत अनागतकाल और अन्य देशवर्ती घट पदार्थ नहीं कहा जा सकता। तथा जिस तरह घट नूतनरूपसे है उसतरह यदि पुरातनरूप एवं समस्त रूप समस्त गंध समस्त स्पर्श समस्त संख्या और समस्त आकार आदि रूपसे भी उसे माना जायगा तो जिसप्रकार सर्वथा आगामी कालमें होने ID वाला भवन घट नहीं कहा जाता उसीप्रकार पुरातन आदि स्वरूप भीघट नहीं कहा जा सकता। तात्पर्य | यह है कि जिसप्रकार भवनः रूप रस गंध स्पर्श स्वरूप तथा पृथु (विशाल) महान (बडा) छोटा भराहुआ और रीताहुआ स्वरूप है तथा वह भवन किसी भी वस्तु वा वस्तुके किसी धर्मसे जुदा नहीं इसलिए वह भवन पदार्थः घटस्वरूप नहीं होता उसीप्रकार पुराण एवं समस्त रस गंध आदि स्वरूप पदार्थ भी घट नहीं हो सकता। तथा इसीप्रकार DISSSSSURES SHRSHIBIRBEलन BARABECEMARA बा११६९
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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