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सरा
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एक ही घट किसी पदार्थसे पहिले होनेके कारण पूर्व, पर होनेसे पर, समीप होनेसे आसन्न, नूतन होनेसे नवीन, पुराना होनेसे प्राचीन, जल आदिके धारणमें समर्थ होनेसे समर्थ, मुद्र आदिकी चोट खानेमें असमर्थ होनेसे असमर्थ, देवदत्त द्वारा बना हुवा होनेके कारण देवदचकृत, चैत्र नामक पुरुष का होनेसे चैत्रस्वामिक, संख्याका धारक होनेसे एक आदि संख्यात्मक, परिमाणका धारक होनेसे छोटा बडा आदि परिमाणस्वरूप, अन्य पदार्थोंसे पृथक् रहनेके कारण पृथक्त्वस्वरूप, दूसरे पदार्थोसे | मिला हुवा होनेसे संयोगस्वरूप और विभक्त होनेके कारण विभागस्वरूप इसरीतिसे जिस प्रकार पूर्व पर आदि अनेक. नामस्वरूप है क्योंकि संबंधी पदार्थ अनंते माने हैं तथा भिन्न भिन्न संबंधी पदार्थकी | अपेक्षा भिन्न भिन्न पर्यायवाला होता है उसीप्रकार संबंधीकी अपेक्षा एक भी आत्मा अनेक पर्यायस्वरूप
परिणत होनेके कारण अनेकस्वरूप है इसीतसे दूसरी अनेक वस्तुओं के संबंधसे संबंधीका अनेक Me स्वरूप होना बाधित नहीं। अथवा
पुद्गलानामानंत्यात्तत्तत्पुद्गलद्रव्यमपेक्ष्य एकपुद्गलस्थस्य तस्यैकस्यैव पर्यायस्यान्यत्वभावात् ॥९॥
(प्रदेशिनीका अर्थ तर्जनी-अंगूठाके पासकी उंगली है। मध्यमाका अर्थ तर्जनीके पास की बीचकी अंगुली है और अनामिकाका अर्थ वीचके पासवाली अथवा कनिष्ठा जो सबसे छोटी अंगुली उससे | बडीका नाम है।) प्रदेशिनी अंगुलीका मध्यमा अंगुलीके भेदपे जो भेद है वह अनामिकाके भेदसे नहीं। ना है। तथा मध्यमा और अनामिकाकी भी आपसमें समानता नहीं किन्तु भेद है क्योंकि प्रदेशिनी और
मध्यमाके भेदका जो कारण कहा गया है वह मध्यमा और अनामिकाके मेद करानेमें भी समान है | नाला परंतु विचार यहाँपर यह करना है कि यह जो प्रदेशिनीका मध्यमाके भेदसे अर्थसत्व अर्थात् भेद है।
ABORA
Ananima
CS-BAवसमत्वावर
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