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________________ अध्याय SABASAOTEKARSASRASADARSA हू है इसालये इनकी उत्कृष्ट स्थिति ब्रह्मलोक और ब्रह्मोचर स्वर्गमें भी जघन्य मानी जाती जो कि आगमः | द विरुद्ध थी परंतु अनंतर शब्दके कहनेसे यह आगम विरुद्ध आपचि नहीं हो सकती क्योंकि ब्रह्मलोक और ब्रह्मोचर स्वर्गसे यद्यपि सौधर्म और ऐशान स्वर्ग पूर्व हैं किंतु माहेंद्र आदिका वीचमें व्यवधान पडा हुआ है इस लिये व्यवधानरहित पूर्व नहीं हैं इस प्रकार सौधर्म ऐशान स्वर्गकी उत्कृष्ट स्थिति | सानत्कुमार माहेंद्रमें ही जघन्य मानी जाय ब्रह्मलोक ब्रह्मोचरमें न मानी जाय इस व्यवधानरहित कार्यकी | 8 सिद्धिके लिये सूत्रमें अनंतर शब्दका प्रयोग युक्तियुक्त और अबाधित है ॥ ३३॥ ____नारकियोंकी उत्कृष्ट स्थिति पहिले कह दी गई। जघन्य स्थिति यद्यपि सूत्रमें कही नहीं गई इस लिये प्रकरणविरुद्ध भी है तथापि यदि यहां उसका उल्लेख किया जायगा तो लघु उपायसे उसका प्रति-1 है पादन हो जायगा विशेष आडम्बर न करना पडेगा ऐसी इच्छासे सूत्रकार यहां नारकियोंकी जघन्य | स्थिति के प्रतिपादनार्थ सूत्र कहते हैं नारकाणां च द्वितीयादिषु ॥३५॥ जिसप्रकार वैमानिक देवोंकी जघन्य स्थिति कही गई है उसीप्रकार दुसरे तीसरे आदि नरकोंमें | नारकियोंकी भी जघन्य स्थिति समझ लेनी चाहिये । अर्थात् रत्नप्रभा पृथिवीमें नारकियोंकी जो उत्कृष्ट | आयु है शर्करा पृथिवीमें वह आयु जघन्य है। उसी तरह आगे भी समझ लेनी चाहिये । वार्तिककार तू सूत्रमें जो 'च' शब्द है उसका फल बतलाते हैं चशब्दः प्रकृतसमुच्चार्थः ॥१॥ .. 'परतः परतः पूर्वा पूर्वाऽनंतरा, अपरा स्थितिः' अर्थात् पहिले पहिले स्वर्गोंकी उत्कृष्ट स्थिति SUPERHSSCUPSARDPORN - S ARORISANERIES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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