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अध्याय
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व्यवधानरहित आगे आगेके स्वर्गों में जघन्य है, यह यहाँपर प्रकरण चलरहा है। च शब्दसे इस प्रकरण. है प्राप्त अर्थका इस सूत्रमें संबन्ध है इसलिये यहांपर यह अर्थ समझ लेना चाहिए कि रत्नप्रभामें नारकिॐ योंकी जो एक सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है वह शर्कराप्रभामें नारकियोंकी जघन्य है । शर्कराप्रभामें ॐ नारकियोंकी जो तीन सागरप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है वइ बालुका प्रभामें जघन्य है वालुका प्रभामें जो
नारकियोंकी उत्कृष्ट स्थिति सात सागरप्रमाण कह आये हैं वह पंकप्रभामें नारकियों की जघन्य है इसी तरह आग भी समझ लेनी चाहिये । इसका विस्तारसे वर्णन तीसरे अध्यायमें कर दिया गया है ॥३५॥
शर्कराप्रभा आदि नरकोंकी जघन्य स्थिति जान ली गई परंतु पहिले नरकमें नारकियोंकी जघन्य है, स्थिति क्या है ? यह बात नहीं जानी इसलिए सूत्रकार अब पहिले रत्नप्रभा नरककी जघन्य स्थितिका । वर्णन करते हैं
दशवर्षसहस्राणि प्रथमायां ॥३६॥ प्रथम नरकमें सीमंतक नामक पहिले पाथडेमें नारकियोंकी जघन्य आयु दश हजार वर्षकी है। % ऊपरके सूत्रसे इससूत्रमें 'अपरा स्थिति' शब्दकी अनुवृचि है इसीलिए यह दश हजार वर्षकी जघन्य ९ स्थिति कही है ॥३॥ अब सूत्रकार भवनवासियोंकी जघन्य स्थितिका वर्णन करते हैं
भवनेषु च ॥३७॥ भवनवासियों में भी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षकी है। सूत्रमें जो चशब्द है उसका अर्थ समुच्चय हैं इसलिए चशब्दसे इससूत्रमें दश हजार वर्षकी जघन्य
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