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सूक्ष्म और वादरके भेदसे तियच दो प्रकारके होते हैं। जिनकी उत्पति सूक्ष्म नाम कमके उदयसे || || हो वे सूक्ष्म हैं। वे पृथ्वी जल तेज वायु और वनस्पतिके भेदसे पांचप्रकारके हैं और समस्त लोकमें | अध्यान || सर्वत्र फैले हुये हैं तथा पृथ्वी जल तेज वायु वनस्पति विकलद्रिय अर्थात् दो इंद्रिय तेइंद्रिय चौइंद्रिय एवं | पंचेंद्रिय जो कहीं कहीं पर रहते हैं सर्वत्र नहीं वे सव वादर हैं। शंका
द्वितीयेऽध्याये तन्निर्देश इति चेन्न कृत्स्नलोकभावात् ॥६॥ शेषसंप्रतिपत्तेश्च ॥७॥ ___दूसरे अध्यायमें जहां पर इंद्रियोंका वर्णन किया गया है वहींपर तियचोंका वर्णन कर देना ना योग्य था यहां उनका वर्णन क्यों किया गया सो ठीक नहीं । तियचोंके रहनेका स्थान सर्वलोक है।
सर्वलोकके वर्णनके वाद ही उनके आधारका उल्लेख करना सुगम हो सकता है । यहांतक सर्वलोकका | वर्णन किया जा चुका है इसलिए सुगमतासे तियों के आधारके बतलानेकेलिए यहां उनके आधारका ||] मा उल्लेख किया है। तथा और भी यह बात है कि
- नारकी देव और मनुष्योंके वर्णनके बाद उनसे अन्य जो अशिष्ट संसारी जीव हैं वे तियच हैं | इसप्रकार शेषोंका लाभ स्पष्टरूपसे होता है इसलिये नारक आदिके वर्णन के बाद शेषोंको तिथंच बता- 17 IPI नेके लिए यहाँपर ही तियंचोंका उल्लेख किया गया है ॥२७॥ I. अब स्थितिका वर्णन करना चाहिये उनमें नारकी तिथंच और मनुष्यों की स्थितिका वर्णन तो कर
दिया गया अब देवोंकी स्थितिका वर्णन करना आवश्यक है इसलिए देवों की स्थितिका वर्णन किया जाता है। उनमें भी चारो निकायोंमें भवनवासी निकायका सबसे पहिले उल्लेख किया गया है इसलिये सबसे ७ ११२९ पहिले सूत्रकार भवनवासी देवोंकी स्थितिका वर्णन करते हैं
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