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मध्याव
स्थितिरसुरनागसुपर्णहीपशषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमाहानामता ॥२८॥
असुरकुमार नागकुमार सुपर्णकुमार द्वीपकुमार और शेष छह कुमारोंकी आयु क्रमसे एकसागर, । तीन पल्य, ढाई पल्प, दो पल्य और डेढ पल्यकी है।
असुरादीनां सागरोपमादिभिरभिसंबंधो यथाक्रमं ॥१॥ असुर आदि शब्दोंका सागरोपम आदि शब्दोंके साथ क्रमसे संबंध है । यहाँपर जो यह स्थिति बतलाई गई है वह उत्कृष्ट स्थिति है जघन्य स्थिति भवनवासी देवोंकी आगे कही जायगी। असुरकुमार आदि देवोंमें विभक्तरूपसे स्थितिका वर्णन इसप्रकार है___ असुरकुमार देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरप्रमाण है। नागकुमारोंकी तीन पल्य, सुपर्णकुमा. ' रोंकी ढाई पल्प, दीपकुमारोंकी दो पल्य वाकीके छह कुमारोंमें प्रत्येककी डेढ डेढ पल्प की है ॥२८॥
• आदि देवनिकाय अर्थात भवनवासी देवोंके स्थितिके प्रतिपादन कर देनेके बाद व्यंतर और ज्योतिषी देवोंकी स्थिति क्रमप्राप्त है परंतु वह न कहकर पहिले वैमानिक देवोंकी स्थितिका वर्णन किया है , जाता है। यदि यहांपर यह कहा जाय कि व्यंतर और ज्योतिषी देवों की स्थितिका उल्लंघन कर वैमानिक देवोंकी पहिले स्थिति क्यों कही जाती है ? उसका समाधान यह है कि-व्यंतर और ज्योतिषी देवोंकी यहां स्थिति कहनेमें सूत्रमें आधिक अक्षर कहनेसे गौरव होगा और आगे कहने में अक्षरोंका लाघव होगा इसलिये इनकी आग ही स्थिति कहना लाभदायक है। इस तरह वैमानिक देवोंमें सबसे पहिले कहे गये सौधर्म और ऐशान स्वर्गों के निवासी देवोंकी सितिका सूत्रकार वर्णन करते हैं
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