________________
हूँ , सारस्वतादित्यवन्यरुणगर्दतोयतुषिताव्यावाधारिष्टाश्च ॥२५॥
___ सारस्वत आदित्य वह्नि अरुण गर्दतोय तुषित अव्याबाध और अरिष्ट ये आठ प्रकारके लोकांतिक तुं है देव होते हैं। प्रश्न-सारस्वत आदि देवोंका निवास स्थान कहां है ? उत्तर
___ पूर्वोत्तरादिषु दिक्षु यथाक्रमं सारखतादयः ॥१॥ पूर्वोत्तर (ईशान ) आदि आठों दिशाओंमें क्रमसे सारस्वत आदि देवोंका निवास है । खुलासा 4 इसप्रकार है
अरुण समुद्रसे उत्पन्न, मूलभागमें संख्यात योजन चौडा एक तमोमयी स्कन्ध है। वह समुद्र के दं समान गोलाकार है, गाढ अन्धकारसे आच्छन्न है । वह क्रमसे ऊपरकी ओर बढता हुआ मध्य और है अन्तभागमें संख्यात योजनका मोटा है । अरिष्ट नामक इन्द्रक विमानके अधोभागमें जाकर मिला है। * मुगैके समान वक्ररूपसे व्यवस्थित है । उस स्कन्धके ऊपर आठ अन्धकारकी श्रेणियां हैं । वे अरिष्ट 1 नामक इन्द्रक विमानके समीप हैं। अंतरालमें चारो दिशाओंमें एकमएक हैं और तिर्यक् लोकके अंत ६ पर्यंत विस्तृत हैं। उनके मध्यमें सारस्वत आदि देवोंकी स्थिति है।
पूर्वोचर अर्थात 'ईशान' कोणमें सारस्वत विमान हैं। पूर्वदिशामें आदित्य विमान हैं। पूर्व और हूँ दक्षिणके मध्य अग्नि कोणमें वह्नि विमान है। दक्षिण दिशामें अरुण विमान है। दक्षिण पश्चिम कोणमें है गर्दतोय विमान है । पश्चिम दिशामें तुषित विमान है । पभिमोचर अर्थात् वायव्यकोणमें अव्याबाघ P विमान है और उत्तरदिशामें अरिष्ट विमान है। .
चशब्दसमुश्चिताः तदंतरालवर्तिनः॥२॥
HERS
5SSAGE