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अध्याय
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भी संभव है परंतु उसकी अविवक्षा है । खुलासा भाव यह है कि जिसकी बहुलता है उसीका नाम लिया गया है जिसप्रकार पीत आदि शुद्ध लेश्याओंकी स्वर्गों में बहुलता है उतनी पीतपद्म आदि मिश्र लेश्याओंकी नहीं इसलिए सूत्र में उनका अनुल्लेख है इसप्रकार आगमविरोधान होनेसे सूत्रका उपर्युक्त अर्थ अबाधित है। अथवा
पाठांतराश्रयाहा ॥९॥ 'पीतपद्मशुक्ललेश्या दित्रिशेषेषु' इसकी जगह 'पीतमिश्रपद्ममिश्रशुक्ल लेश्या दिदिचतुचतुःशेषेषु' ऐसा दूसरा पाठ भी अभिमत है इसका अर्थ यह है कि दो स्त्रों में पीतलेश्या है दो वर्गों में मिश्रलेश्या है। चार स्वर्गों में पद्मलेश्या है । चार स्वर्गों में मिश्र लेश्या है और अवशिष्ट स्वगों में शुक्ल लेश्या है। यही अर्थ ऊपर कहा गया है इसलिए शास्त्रविरोध न होनेसे कोई विरोध नहीं है। निर्देशवर्णपरिणामसंक्रमकर्मलक्षणगतिखामित्वसाधनसंख्याक्षेत्रस्पर्शनकालांतर
भावाल्पबहुत्वैश्च साध्या लेश्याः ॥१०॥ निर्देश १ वर्ण २ परिणाम ३ संक्रम ४ कर्म ५ लक्षण : गति ७ स्वामित्व ८ साधन ९ संख्या १० क्षेत्र ११ स्पर्शन १२ काल १३ अंतर १४ भाव १५ और अल्पबहुत्व १६ इन सोलह बातोंसे लेश्याओंकी || सिद्धि है। खुलासा इसप्रकार है__' कृष्णलेश्या नीललेश्या कापोतलेश्या तेजोलेश्या पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या यह तो लेश्याओंका निर्देश-नाममात्र कथन है। भोरके समान काला, मोरके कंठके समान नीला, कबूतरके रंगका, सोनके समान पीला, कमलके रंगका आर शंखके समान सफेद ये कृष्ण आदि लेश्याओंके क्रमसे वर्ण हैं अर्थात्