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हा कृष्णलेश्याका रंग भोरेके समान काला है। नीललेश्याका मोरके कंठके समान वर्ण है । कपोतलेश्याका RAIP कबूतरके समान वर्ण है। पीतलेश्याका तपे सोनेके समान वर्ण है। पालेश्याका कमलके समान वर्ण है अध्याय
और शुक्ललेश्याका शंखके समान सफेद वर्ण है। यह तो मुख्य रूपसे वर्णोंका उल्लेख है परंतु प्रति समय है। ११०१ होनेवाले दूसरे दूसरे वाँकी अपेक्षा लेश्याओंके वाँके अनंत भेद हैं। एक दो तीन चार संख्याते
असंख्याते और अनंते प्रकारके कृष्ण गुणोंके संबंधसे कृष्णलेश्याके अनंते भेद हैं इसीप्रकार नील आदि लेश्याओंके अनंते अनंते भेद हैं। परिणामकी अपेक्षा लेश्याओंकी सिद्धि इसप्रकार है___असंख्याते लोक प्रदेशोंकी बराबर असंख्यातगुणे जो कषायोदय स्थान हैं उनमें जो उत्कृष्ट मध्यम 15 और जघन्यरूप अंश हैं उनमें उत्चरोचर संक्लेशकी हानिसे परिणामस्वरूप आत्माके क्रमसे, कृष्ण नील और कापोत इन तीन अशुभ लेश्याओंका परिणाम होता है अर्थात् कषायोदय स्थानोंके उत्कृष्ट अंशोंमें | वि संकेश रहता है इसलिए उससमय आत्मामें कृष्णलेश्याका परिणमन होता है, मध्यम अंशोंमें ||2|| क्लशकी हीनता रहती है इसलिए उससमय आत्मामें नील लेश्याका परिणमन होता है एवं जघन्य। अंशों में और भी अधिक संक्लेशकी हीनता रहती है इसलिए उससमय कापोत लेश्याका परिणमन होता
है। तथा कषायोदय स्थानोंके जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट अंशोंमें विशुद्धिकी बढवारीसे पीत, पद्म और ई शुक्लरूप शुभ लेश्याओंका परिणमन होता है। तथा उत्कृष्ट मध्यम और जघन्य अंशोंमें विशुद्धिकी उत्त
| रोचर कमी होनेसे शुक्ल पद्म और पीत इन शुभरूप तीनों लेश्याओंका परिणमन होता है एवं कषा2 योदय स्थानोंके जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट अंशोंमें संक्लेशको उत्तरोचर बढवारी होनेपर कापोत नील है | कृष्ण इन तीन अशुभ लेश्याओंका परिणमन होता है । कृष्णादि लेश्याओंमेंसे प्रत्येक लेश्या लोकके।
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