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________________ अंधार तारा भाषा १० | तथापि शुद्धोंका ग्रहण है। इसलिये उनके ग्रहणसे मित्रों का भी ग्रहण कर लिया जाता है अर्थात् पीत पद्म और पद्मशुक्ल ये दो-मिश्र हैं इनके शुद्ध पीत और पद्म हैं इसलिये पीतके उल्लेखसे पीतपद्म इस मिश्र का, पद्मके उल्लेखसे पद्म शुक्ल इस मिश्रका ग्रहण अबाधित है.। इसीरीतिसे पीत पद्म यहाँपर दोनोंमें किसी एकके ग्रहणसे मिश्रका ग्रहण हो सकता है तथा पद्म शुक्ल यहांपर भी दोनों में किसी एकके ग्रहण करनेसे 2 || मिश्रका ग्रहण हो सकता है। कोई दोष नहीं। यदि कदाचित् यह शंका की जाय कि हित्रिशेषग्रहणमिति चेन्नेच्छातः संबंधोपपत्तेः॥८॥ सूत्रमें 'द्वित्रिशेषेषु' ऐसा पाठ है और उसका यही अर्थ होता है कि दोस्वर्गों में पीत लेश्या है, तीनमें | || पद्मलेश्या है और शेष स्वर्गों में शुक्ललेश्या है इस व्यवस्था मिश्रका भान नहीं होता इसलिये पीत आदिकई | कहनेसे जो पीत पद्म आदि मिश्ररूप लेश्याओंका ग्रहण किया गया है वह ठीक नहीं तथा दो स्वर्गों में पीत लेश्या हे' इत्यादि पाठके अनुसार जो अर्थ किया गया है वह भी आगमबाधित होनेसे अनिष्ट ही है अतः 'द्वित्रिशेषेषु' सूत्रमें ऐसे शब्दका उल्लेख रहनेसे अभीष्ट सिद्धि नहीं हो सकती ? सो भी ठीक | 8 नहीं । जहाँपर जो संबंध किया जाता है वह इच्छासे होता है । यहाँपर भी जो स्वर्गों में लेश्याओंका संबंध किया गया है वह इच्छासे है और उसकी व्यवस्था इसप्रकार हैl सौधर्म ऐशान और सानत्कुमार माहेंद्र इन दो कल्पों के युगलोंमें पीत लेश्या है। यद्यपि सानत्कुमार IXII माहेंद्र नामक दसरे जोडेमें पद्मलेश्या है परंत उसकी विवक्षा नहीं है। ब्रह्म ब्रह्मोता. लांत काविषयौर || शुक्र महाशुक्र इन तीन युगलोंमें पद्मलेश्या है। यद्यपि शुक्र महाशुक्र नामक युगलमें शुक्ललेश्या भी है परंतु उसकी विवक्षा नहीं है । तथा शेषके शतार आदि विमानोंमें शुक्ललेश्या है। यद्यपि यहांपर पद्मलेश्याका BRAUTORRBIBIOPORANORAPAHARSASUR.
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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