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अध्याय xge
वाचा
है उसके ऊपर असंख्यात लाख योजनोंके अंतरसे तीसरा विमल पटल है इसीप्रकार आगे भी समझ लेना चाहिये।
सौधर्म स्वर्गके इकतीसवें प्रभा नामक पटलकी दक्षिण दिशामें बत्तीस श्रेणिवद्ध विमान हैं। उनमें | अठारहवें विमानका नाम कल्प है। यही सौधर्म स्वर्गके सौधर्म इंद्रका निवासस्थान विमान है। इस विमानके स्वस्तिक वर्धमान और विश्रुत तीन परकोटे हैं वाह्य प्राकारमें सेना और पारिषद देव रहते है। मध्यके प्राकारमें त्रायस्त्रिंश देवोंका निवासस्थान है एवं अभ्यंतर प्राकारमें स्वयं सौधर्म इंद्र रहताहै। ।
। सौधर्म इंद्रके निवासका जो विमान है उसकी चारो दिशाओंमें कांचन १ अशोकमंदिर २ मस्तार |३ और गल्व " ये चार नगर हैं एवं सौधर्म इंद्रके बचीस लाख विमान हैं। तेतीस त्रायत्रिंश देव हैं। चौरासी हजार आत्मरक्षक देव हैं । तीन सभा हैं। सात सेना हैं। चौरासी हजार सामानिक देव हैं।
चार लोकपाल हैं। पद्मा १ शिवा २ सुजाता ३ सुलसा ४ अंजुका ५कालिंदी श्यामा और भानु | ये आठ उस सौधर्म इंद्रकी पट्टदेवियां हैं। और भी चालीस हजार वल्लमिका देवियां हैं। ये समस्त पट्ट
देवियां और वल्लमिका देवियां पांच पांच पल्यकी आयुकी धारक हैं और सोलह सोलह हजार देवियों से परिवारित हैं। तथा हरएक पट्टदेवी और वल्लभिका देवी अपनी अपनी विक्रियासे सोलह सोलह |
हजार देवियोंके रूप धारण करनेमें समर्थ है। It सौधर्म स्वर्गकी अभ्यंतर सभाका नाम समिता है। उस सभाके बारह हजार देव सभासद हैं और से उनमें प्रत्येककी पांच पांच पल्यकी आयु है । मध्यम सभाका नाम चन्द्रा है। वह चौदह हजार देवोंकी।
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