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१८ तपनीय १९ मेघ २० हारिद्र २१ पद्म २२ लोहिताक्ष २३ व २४ नंद्यावर्त २५ प्रभंकर २६ पिष्टांका २७ गजे २० मस्तक २९ चित्र ३. और प्रभा ३१ ये इकतीसं विमानोंके प्रस्तार हैं। इन पटलोंके मध्य | भागमें उन्हीं नामोंके धारक इकतीस इंद्रक विमान भी हैं। . मंदरमेरुकी चोटीपर सौधर्म स्वर्गका पहला ऋतु विमान है। चोटी और ऋतु विमानका आपतका फासला वालके अग्रभागकी बराबर है। ऋतु विमानकी चारो दिशाओंमें चार विमानोंकी श्रोणयां हैं। प्रत्येक श्रेणिके बासठ बासठ विमान हैं अर्थात् ऋतु नामके इंद्रक विमानकी चारो दिशाओंमें प्रत्येक दिशामें बासठ बासठके हिसाबसे श्रेणिबद्ध विमान हैं। विदिशाओंमें पुष्पप्रकीर्णक विमान हैं तथा | अंतके प्रभा नामक इंद्रक विमान पर्यंत एक एक श्रेणिवद्ध विमानकी हानि होती चली गई है ऐसा समझ लेना चाहिये । अर्थात् ऋतु नामके इंद्रक विमानकी चारो दिशाओं में प्रत्येक दिशामें बासठ बासठ श्रेणिवद्ध विमान हैं। चंद्र नामक इंद्रक विमानकी चारो दिशाओंमें प्रत्येक दिशामें इकसठ इकसठ श्रेणिवद्ध विमान हैं। विमल नामक इंद्रक विमानकी चारो दिशाओंमें प्रत्येक दिशामें साठ साठ श्रेणिवद्ध विमान हैं इसीप्रकार आगे भी समझ लेना चाहिये । तथा अंतके प्रभा नामक पटलकी चारो दिशाओंमें प्रयेक | दिशामें बचीस वत्तीस श्रेणिबद्ध विमान रह जाते हैं। T ये जो ऋतु आदि इकतीस पटल कह आए हैं उनमें प्रत्येकका आपसमें अंतर असंख्यात असंख्यात लाख योजनका है अर्थात् ऋतु पटलके ऊपर असंख्यात लाख योजनके अंतराल के बाद चंद्र पटल है।
.१। प्राचीन भाषामें लोहित और अक्ष दो मेद माने हैं परंतु लोहित ऊपर नवमां विमान भी कह पाये हैं । २ प्राचीन भाषामें गजमस्तक एक ही मेद रक्खा है हरिवंशपुराणमें गज और मित्र यह-पाठ है।