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________________ शतार और सहस्रार, उनके ऊपर आनत और प्राणत एवं उनके ऊपर आरण और अच्युत ये दो all स्वर्ग हैं। . प्रत्येकमिंद्रसंबंधो.मध्ये प्रतिद्वयं ॥७॥ ॥ नीचे और ऊपर एक एक स्वर्गके पीछे एक एक इंद्र है और मध्यमें दो दो वर्गों के पीछे एक एक || इंद्र हैं। भावार्थ-सौधर्म और ऐशान स्वर्गों में दो इंद्र हैं । सानत्कुमार और माहेंद्रमें दो इंद्र हैं । ब्रह्म ।। 1 और ब्रह्मोचर में एक ब्रह्म नामका ही इंद्र है। लांतव और कापिष्ठमें एक लांतव नामका इंद्र है। शुक्रः ॥ || और महाशुक्रमें एक शुक नामका एवं शतार और सहस्त्रारमें एक शतारनामका है। आनत और प्राणत || इन दो स्वर्गों में दो इंद्र हैं तथा आरण और अच्युत इन दो स्वर्गों में दो इंद्र हैं। तथा चोत्तरयोः पृथग्वचनमर्थवत् ॥८॥ 'आनतप्राणतारणाच्युतेषु' ऐसा एक ही ईद समासांत एक पद उपयुक्त था फिर जो आनतप्राणIPI तयो' और 'आरणाच्युतयो' दोनों युगलोंका पृथक् पृथक् उल्लेख किया गया है वह विशेष प्रयोजनके ||२|| लिये है। उस प्रयोजनका स्पष्टीकरण इसप्रकार हैका मध्यलोककी समतल भूमिसे निन्यानवे हजार चालीस योजनकी ऊंचाईपर सौधर्म और ईशान स्वर्ग या है। इन दोनों स्वर्गों में महलोंके समान ऋतु १ चंद्र २ विमल ३ वल्गुथ्वीर ५अरुण ६नंदन ७ नलिन । S|| लोहित ९ कांचन १० चंचत् ११ मारुत १२ ऋद्धीश १३ वैडूर्य १५ रुचक १५ रुचिर १६ अंक १७ स्फटिक 18 १-दूसरी प्रतिमें-'द्वीश' यह नाम रक्खा है परन्तु संशोधित राजवार्तिक और हरिवंशपुराणमें 'ऋद्धीश' नाम है। BASSAMARORA १.११ RUPEROR %3 .
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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