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तो इस बातका घोर विरोधी है ! जैन राजाओंके समय में भी जैनोंने किसी प्रकारका अन्य मतोंसे बलात्कार या अत्याचार नहीं किया, ऐसा इतिहाससे जान पडता है ! इसलिए अन्यमत सहिष्णुता के संबंध में जैनों को यदि हम प्रथम श्रेणीमें माने तो कोई अत्युक्ति नहीं है !! स्वामीजीने जो जैनोंको वृथा ही निर्दयी और हिंसक कहकर अपनी सरस्वतीको पवित्रत किया है इसके विषय में हम उनको धन्यवाद ही देते हैं ! ! ! [ घ ]
स्वा० द० स०--" सम्यक श्रद्धान सम्यक दर्शन ज्ञान और चारित्र ये चार मोक्षमार्ग के साधन हैं ! इनकी व्याख्या योगदेवने की है इत्यादि [ सत्या० पृ० ४२८ ]
सर्वथाऽनवद्ययोगानां त्यागश्चारित मुच्यते । कीर्त्तितं तदहिंसादि व्रत भेदेन पंचधा ॥ सब प्रकारसे निन्दनीय अन्य मत संबंध का त्याग चारित्र कहाता है और अहिंसादि भेदसे पांच प्रकारका व्रत है । ( सत्या० पृ० ४२९ )
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समालोचक- स्वामीजीने जैन ग्रंथोंका कहां बैठकर अध्ययन किया होगा ? इसका पता लगाते हुए हम इसी परिणामपर पहुंचे हैं कि, वह स्थान ऐसा होना चाहिए कि, जहां पर सिवा अंधकार के अन्य वस्तुका अस्तित्व ही न हो ! जैन के किसी भी ग्रंथ में मोक्षके उक्त चार साधन नहीं बतलाए. यदि किसी ग्रंथ स्वामजिकेि कथनानुसार लिखा होतो समझ लो कि वह जैन मतका ग्रंथ ही नहीं ! अस्तु ! बन्ध्याया: भोग्यां विधातुं स्वामिन एव समर्थाः ! !