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________________ [ग] विवेकसार पृष्ठ १०८का हवाला देते हुए स्वामीजीने नमुचि नामके दीवानकी कथा लिखकर जो जैनोंको हिंसक तक कह मारा है ! उसके बारेमें पाठकोंसे हमारा इतना ही निवेदन है कि, उक्त ग्रंथके पृष्ठ १०८में इस प्रकारकी कथाका उल्लेख नहीं है । अस्तु ! " तुप्यतु दुर्जनः" इस न्यायसे हम स्वामीजीको उक्त कथाको थोडे समयके लिए सत्य मान कर ही उसपर विचार करते हैं। जैनोंने यदि मथुराके राजाके नमुचि नामा दीवानको अपना विरोधी समझकर मार डाला तो इससे स्वामीजीको क्या क्षति पहुंची थी जो उन्होंने जैनोंकी निंदा करनेमें जी तोड़ मेहनत की ?। हमारे ख्यालमें तो स्वामीजीको बहुत प्रसन्न होना चाहिए था ! क्योंकि उनके सिद्धांतसे यह कथा कितनेक अंशमें मिलती जुलती है ! जैसे-" शत्रुके नगरोंको उजाड़ने, वैदिक धर्मके विरोधियोंको आगमें जलाने, व्याघ्र आदि हिंसक प्राणियोंके मुंहमे देने और तड़फा तड़फा कर मारने " आदिका सदुपदेश स्वामीजी स्वयं ही भारत संतानको कर गए हैं !-देखो उनका यजुर्वेद भाष्य । शोक है कि, नमुचि नामा दीवानको जैनोंने क्यों मारा ? उसने जैनोंका क्या अपराध किया था ? अथवा विना ही अपराधके उसको मार डाला ? इत्यादि बातोंका कुछ भी किसी जैन ग्रंथके आधारसे स्वामीजीने वर्णन नहीं किया ! यदि उक्त मंत्रीने जैनोंका कोई विशेष अपराध किया होगा तो उसको प्राणांत दंड देना कोई , अनुचित काम नहीं; क्योंकि, स्वामीजी स्वयं लिखते है कि "दुष्टोंको दंड देना भी दयामें गणनीय है" कदापि निरप'राधको ही जैनोंने मारा हो ! यह स्वामीजी भले कहें ! इतिहासः
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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