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________________ ८४ (२३) “ सब मतोंके विद्वानोंका सन्मान !" स्वामीजीने सत्यार्थ प्रकाशके पृष्ठ ३८० से ३८२ तकमें एक कल्पित कथा लिखी है उसमें जिज्ञासुके प्रश्नोत्तर रूपसे सब मतों और उनके विद्वानोंकी प्रशंसा करते हुए वे लिखते हैं कि, " फिर आगे चला तो सब मतवालोंने अपनेर को सच्चा कहा कोई हमारा कवीर सच्चा कोई नानक कोई दादू कोई वल्लभ कोई सहजानंद कोई माधव आदिको अवतार बतलाते सुना सहस्रोसें पूछ उनके परस्पर एक दुसरेका विरोध देख विशेष निश्चय किया कि इनमें कोई गुरु करने योग्य नहीं क्योंकि एक एकके झूठमें ९९९ ग्वाह हो गये जैसे झूठे दुकानदार वा वेश्या और भडुआ आदि अपनीर वस्तुकी बडाई. दूसरेकी बुराई करते हैं वैसे ही ये हैं !" इत्यादि । . समालोचक-आशा है कि अन्यमतों तथा मतांतरीय विद्वानोंका स्वामीजीने कितना सत्कार किया है इससे अब हमारे पाठक अपरिचित न रहे होंगे ! मतांतरीय विद्वानोंका आप धर्मके विरोधी दुश्मनोंको आगमें जला देवें ! ! ऐ तेज,धारी पुरुष ! जो हमारे दुश्मनोंको उत्साह ( हौसला ) देता है उसको आप उलटा लटका कर सूखी लकड़ीकी तरह जला देवें.!!! एवं. यजु. अ. १५ मंत्र १७ " हम लोग जिससे शत्रुता ( दुश्मनी) करें और जो हमसे शत्रुता ( दुश्मनी ) करें उसको हम 'व्याघ्र आदिके. हमें डालें और राजा भी उसको व्याघ्र आदिके मुंहमें डाल दे " तथा-यजु. अ. ६ मंत्र. २२ " हे परमेश्वर ! आपकी कृपासे जल और औषधियें (अनाज वगैरह ) हमारे लिये सुखकारक (सुखके देनेवाली ) हों ! और जो हम लोगोंसे द्वेष ( दुश्मनी करता है और जिससे हम लोग द्वेष करते हैं उसके लिये ये ( अन्न और जलादि वस्तु ) दुःख देनेवाले हों !" इत्यादि अधिक देखनेवाले वहां पर ही देख लेवें !
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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