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________________ तो ऐसी . अटाढूट, जंगलीपनकी बातें क्यों कह देता ? ( सत्यार्थ प्रकाश पृ० ४९६) (ख) सच तो यही है कि यह पुस्तक ईसाईयोंका और • ईसा ईश्वरका वेटा जिन्होंने बनाये वे शैतान हों तो हो. इत्यादि-स० पृ० ५०५) (ग) योहन आदि सब जंगली मनुष्य थे. ( इत्यादि स०प्र० प्र० सकामी मतका सलमान ला . (२२) ":इसकामी मतका सन्मान !" (क) यह कुरान कुरानका खुदा और मुसलमान लोग केवल पक्षपात अविद्याके भरे हुए हैं इसीलिये मुसलमान लोग अंधेरेमें हैं ( स० प्र० ५३८) (ख) अंब देखिये कितने महापक्षपातकी बात है कि जो मुसलमान न हो उसको जहां पाओ मारडालो और मुसलमानोंको न मारना भूलसे मुसलमानों के मारनमें प्रायश्चित और अन्यको मारनेमें बहिश्त मिलेगा ऐसे उपदेशको कुएंगे डालना , चाहिये ऐसे ऐसे पुस्तक ऐसे२ पैगंबर ऐसे २ खुदा और ऐसेर मतसे सिवाय हानिसे लाभ कुछ नहीं ऐसांका न होना अच्छा है.* ( स० पृ० ५४१) * कुरानके अंदर यदि उक्त शिक्षाका उपदेश हो तो उसपर स्वामीजीका इस प्रकारसे लिखना टीक मालम पडना है, क्योंकि मुसलमानसे अन्यको (चाहे उसने कुछ भी अपराध न करा हो) मार डालना, और मुसलमान (चाहे वह अपराधी भी हो) को . भूल कर भी नहीं मारना-यह उपदेश न्यायको सीमा। . निस्संदेह बाहर है ! परंतु हमे विवश होकर कहना पडना. है कि, स्वामी महोदयके यजुर्वेदादि भाप्योमें भी इस प्रकारकी सुशिक्षाकी कमी नहीं!. उदाहरणार्थ यजुर्वेद भाष्यं अध्याय १२ मंत्र १३ " हे राज पुरुष.!.
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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