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________________ 'पूछना चाहिये कि जब बड़े दुःख दाई भंगदरादि रोगग्रस्त होकर ऐसे झीक २ कर मरते हैं कि जिसको येही जानते होंगे सच पूछो तो पुष्टि मार्ग नहीं किंतु कुष्टिमार्ग है जैसे कुष्टिके शरीरकी सब धातु पिघल २ के निकल जाती हैं और विलाप - करता हुआ शरीर छोडता है ऐसी ही लीला इनकी भी देखनेमें आती है इसलिये नरकमार्ग भी इसीको कहना संघटित हो सकता है. [स० पृ० ३६६] - (ग) गो लोक स्वर्गकी अपेक्षा नरकवत् हो गया होगा अथवा जैसे वहुत स्त्रीगामी पुरुष भगंदरादि रोगोंसे पीडित रहते हैं वैसा ही गोलोकमें भी होगा ! छि छि !! छ !!! (इत्यादि सत्यार्थ प्रकाश पृष्ठ ३६७ से ३६९ तकका लेख अवश्य देखने योग्य है) [१६] " स्वामी नारायण मतका सन्मान !" (प्रश्न ) स्वामीनारायणका मत कैसा है ? (उत्तर) "याशी शीतलादेवी तादृशः खरवाहनः" जैसी गुसांइजीकी धन.हरण आदिमें विचित्र लीला है वैसी ही स्वामीनाराणयकी भी है ! [ स० पृ० ३६९] . . ( इस मतके संबंधमें पृष्ठ ३७० में स्वामीजीने एक नाककटोंकी कथा लिखी है ! विस्तारके भयसे उसे यहां उद्धृत नहीं किया गया पाठक महोदय वहांसे ही देख लेवें.) [१७] "मा ध्व और लिंगांकित संप्रदायका सन्मान " (प्रश्न ) माध्व मत तो अच्छा है ! ( उत्तर ) जैसे अन्य मतावलंबी हैं वैसे हीमाध्व भी हैं ... क्योंकि ये भी चक्रांकित होते हैं [इत्यादि-स० पृ० ३७३ ] . . (प्रश्न ) लिंगांकितका मत कैसा है ? (प्रभा . ( उत्तर ) जैसा चक्रांकितका [इत्यादि-स० पृ० ३७४ ]
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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