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________________ ८० आमेरमे रहते थे तेलीका काम करते थे ईश्वरको सृष्टिकी विचित्र लीला है कि दादूजी भी पुजाने. लग गये ! इत्यादि [ सत्या० पृ० ३५८ ] [१४] " रामस्नेही मतका सन्मान !" "थोड़े दिन हुए कि एक रामस्नेही मत शाहापुरासे चला है उन्होंने सब वेदोक्त धर्म छोड़के राम २ पुकारना अच्छा. माना है उसीमें ज्ञान ध्यान मुक्ति मानते हैं परंतु जब भूख लगती है तब " रामनाम " मे से रोटी शाक नहीं निकलता क्यों कि खान आदि तो गृहस्थोंके घरहीमें मिलते हैं वेभी मूर्ति पूजाको घि कारते है परंतु आप स्वयं मूर्ति बन रहे हैं। स्त्रियों के संगमें बहुत रहते हैं क्योंकि रामजीको “रामकी" के विना आनंद नहीं मिल सकता। [सत्या.पृ.३५८-५९-६० में देखो] । [१५]" गोकुलिये गुसाइयोंका सन्मान !" प्रश्न-गोकुलिये गुसाइयोंका मत तो बहुत अच्छा है देखो कैसा ऐश्वर्य भोगते हैं क्या यह ऐश्वर्य लीलाके विना. ऐसा हो सकता है ? उत्तर-यह ऐश्वर्य गृहस्थ लोगोंका है गुसाइयोंका कुछ नहीं। प्रश्न-वाह ! २ गुसाइयोंके प्रतापसे है। उत्तर-दूसरे भी इसी प्रकारका छल प्रपंच रचें तो ऐश्वर्य मिलनेमे क्या संदेह है ? और जो इनसे अधिक धूर्तता करते तो अधिक भी .ऐश्चर्य हो सकता। [स० पृ. ३६२] (ख) ये गोसांई लोग अपने संप्रदायको “ पुष्टिमार्ग" कहते हैं अर्थात् खाने पीने पुष्ट होने और सब स्त्रियोंके संग यथेष्ट भोग विलास करनेको पुष्टि मार्ग कहते हैं ! परंतु इनसे
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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