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________________ ७९ उत्तर -- क्या धूड़ अच्छे हैं ? जैसे वे वैसे ये हैं देख लो वैष्णवोंकी लीला - इत्यादि [सत्या० प्र० पृ० ३५० ] . [११] " कवीरके मतका सन्मान प्रश्न- चीर पंथी तो अच्छे हैं ? - उत्तर -- नहीं ! इत्यादि (अधिक देखो ) [ सत्या० पृ० ४५४ ] [१२] " सिखमत के प्रवर्त्तक गुरु नानक साहवका सन्मान !" प्रश्न - पंजाब देशमें नानकजीने एक मार्ग चलाया है क्यों कि वे भी मूर्त्तिका खंडन करते थे मुसलमान होनेस बचाये वे साधु भी नहीं हुए किंतु गृहस्थ बने रहे देखो उन्होंने यह मंत्र उपदेश किया है इसीसे चिदित होता है कि उनका आशय अच्छा था - ओं सत्य नाम कर्ता इत्यादि । . उत्तर— नानकजीका आशय तो अच्छा था पर विद्या कुछ भी नहीं थी, हां भाषा उस देशकी जो कि ग्रंथोंकी है उसे जानते थे, वेदादिशास्त्र और संस्कृत कुछ भी नहीं जानते थे, जो जानते होते तो " निर्भय ! शब्दको " निर्भी " क्यों लिखते ! और इसका दृष्टांत उनका बनाया संस्कृतीस्तोत्र है चाहते थे कि भै संस्कृतमें भी पग " अडाऊं" परंतु बिना पढ़े संस्कृत कैसे आसकता है ? इत्यादि [ सत्या० पृ० ३५६ ] " " [ १३ ] 'महात्मा दादूजीका सम्मान ! प्रश्न- दादूपंथीका मार्ग तो अच्छा है ? 2 उत्तर—-अच्छा तो वेदमार्ग है जो पकड़ा जाय तो पकड़ो नहीं तो सदा गोते खाते रहोगे इनके मत में दादूजी - का जन्म गुजरात में हुआ था पुनः 'जयपुर के पास
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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