________________
५३
पहले स्वामिनिर्मित ऋग्वदादि भाष्य भूमिकासे ही मुलाकात करते हैं ! संभव है वहांसे ही हमारा मनोरथ सिद्ध हो जाये !! प्यारे सभ्य पाठको ! ऋग्वेदादि भाप्य भूमिका के
सृष्टि विद्या विषयसे सृष्टि संबंधि जिस सूक्ष्म तत्त्वकी हमे प्राप्ति -हुई है, उससे आप लोग, कदापि वंचित न रह जायें इसलिए हम उसको यहांपर उद्धृत कर देते हैं । आशा है कि, आप लोग उसको ध्यान से पढ़ेंगे !
"जब यह कार्य सृष्टि उत्पन्न नहीं हुई थी तब तक एक सर्व शक्तिमान् परमेश्वर और दूसरा जगत्का कारण अर्थात् जगत् वनाकी सामग्री विराजमान थी उस समय शून्य नाम आकाश अर्थात् जो नेत्रोंसे देखने में नहीं आता सो भी नहीं था उस समय सतोगुण रजोगुण और तमोगुण मिलाके जो प्रधान कहाता है वह भी नहीं था उस समय परमाणु भी नहीं थे " इत्यादि - [ ऋगवेदादि भाप्य भूमिका पृष्ट ११७ ]
इसके आगे फिर पृष्ट १२४ में " उसी पुरुषकी सामर्थ्य से घोडे और विजुली आदि पदार्थ उत्पन्न हुए हैं । जिनके मुखमें दोनो और दांत होते हैं उन पशुओंको उभयदत कहते हैं वे ऊंट गधा आदि उसीसे उत्पन्न हुए हैं उसी से गाय पृथिवी किरण और इंद्रिय उत्पन्न हुई हैं इसी प्रकार छेरी और भेड़ें भी उसी से उत्पन्न हुई हैं " इत्यादि -
·
'
हमारे पाठक, स्वामीजीके बतलाए हुए सृष्टि संबंधि सूक्ष्म तत्त्वसे अब तो अच्छी तरह परिचित हो गए होंगे !! पाठक महोदय ! देखना ! सृष्टि ं विद्याके ऐसे सूक्ष्म तत्वको हाथसे जाने मत देना ! संभव है कि, इस प्रकार सृष्टि विद्या संबंधि सूक्ष्म रहस्यों का समझानेवाला, स्वामीजी जैसा उपकारप्रिय मनुष्य, फिर इस संसार में पैदा न हो 1
*
●
:
·
-
"
1
.