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५४ . स्वामीजीके इस महान् उपकारका बदला देनेमें यद्यपि हम समर्थ नहीं हैं ! तथापि स्वामी के लिखे हुए इस नवीन सृष्टि विद्यारूप सूक्ष्म तत्त्वके विषयमें एक मध्यस्थ पुरुपके हृदयमें जितने संदेह उत्पन्न होते हैं उनमेंसे दो चारका भी संतोप जनक समाधान कहीसे मिल सके ऐसी आशा नहीं !! स्वामीजीने सृष्टिकी उत्पत्तिसे पूर्व एक ईश्वर, और दूसरी जगत्के बनानेकी सामग्री, यह दो पदार्थ बतलाए हैं; परंतु वह सामग्री कौनसी समझनी ? इसका उन्होंने कुछ भी पता नहीं दिया ! कदापि प्रकृति अथवा परमाणु यह सामग्री समझें, क्योंकि सत्यार्थ प्रकाशमें उन्होंने प्रकृति और परमाणुओंको अनादि नित्य बतलाया है! जैसे-"प्र० क्या प्रकृति परमेश्वरने उत्पन्न नहीं की ? उ० नहीं वह अनादि है " [पृष्ठ २०८] " हां जगत्का कारण अनादि है क्योंकि वह परमाणु आदि तत्व स्वरूप अकक हैं " [ पृष्ठ ४२३
परंतु स्वामीजी तो यहांपर उस वकत उनके अस्तित्वको भी जवाब दे रहे हैं ! यदि सृष्टिकी उत्पत्तिसे प्रथम आकाश भी नहीं था और प्रकृति भी नहीं परमाणु भी नहीं थे तो, इनके अतिरिक्त वह कौनसी सामग्री थी ? कि जिससे स्वामीजी महाराजके ईश्वरने भेड़, बकरी, गधा, घोडा, ऊंट, हाथी और गाय आदिके शरीरके ढांचे बनाये ! एक स्थानमें तो प्रकृति और परमाणुको अनादि कहना, और दूसरी जगह सृष्टिके पूर्व उनका अभाव बतलाना ! हम नहीं कह सकते कि, इस प्रकारके उन्मत प्रलापको मध्यस्थ समाज किस कक्षामें स्थान देगा!
फिर-ईश्वरसे भेड़, बकरी, गधे, घोडे उत्पन्न हुए, इसका क्या अर्थ ! क्या ईश्वरको इनका प्रसूत हुआ ? अथवा ईश्वरके