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- मानते हैं उनको भी सृष्टि के बाद प्रलय, और प्रलयके अनंतर. सृष्टि, इस परंपराको अनांदि ही स्वीकार करना होगा । अन्यथा सृष्टिके संबंधमें मुसलमान और ईसाइ मतसे कुछ भी विशेष नहीं । "स्वामीजी " स्वयं लिखते हैं कि, " घाता परमात्माने जिस प्रकारके सूर्य चंद्र द्यौ भूमि अंतरिक्ष और तत्रस्थ मनुष्य. विशेष पदार्थ पूर्व कल्पमें रचे थे वैसे ही इस कल्पमें अर्थात् इस सृष्टिमें रचे हैं " [ सत्या० पृ० २३१] स्वामीजीके उक्त लेखसे स्पष्ट मालूम होता है कि, सृष्टि प्रवाहसे अनादि है । यदि स्वामीजीका दूसरा लेख देखा जाय तब तो, इस बात में रहा सहा संदेह भी दूर हो जाता है । तथा हि - ( सत्यार्थ प्रकाश पृष्ठ २२३ ) “ ( प्रश्न ) कभी सृष्टिका प्रारंभ है वा नहीं ? ( उत्तर ) नहीं जैसे दिन के पूर्वं रात और रातके पूर्व दिन तथा दिनके पीछे रात और रातके पीछे दिन बरावर चला आता है इसी प्रकार सृष्टिके पूर्व प्रलय और प्रलयके पूर्व सृष्टि तथा सृष्टिके पीछे प्रलय और प्रलय के आगे सृष्टि अनादि कालसे चक्र चला आता है इसकी आदि वा अंत नहीं. "
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सज्जनो ! स्वामीजी के इस लेखको बड़ी सावधानीसे पढना ! स्वामीजी अपने आप सृष्टिको प्रवाहसे अनादि मानते हुए भी सृष्टिको अनादि कहना निरा झूठ बतलाते हैं ! एक स्थानमें तो सृष्टिको अनादि बतलाना, और दूसरी जगह उसको निरा झूठ कहना! न मालूम स्वामीजीकी यह उच्छृंखलता, क्या तात्पर्य रखती है ? अस्तु ! स्वभावो दुरतिक्रमः !! स्वामीजी जगत्को तो अनादि नहीं मानते, परंतु उसके कारण परमाणुओंको अनादि स्वीकार करते हैं, उनमें नियम पूर्वक बनने और बिगड़ने का सामर्थ्य नहीं है । क्यों कि, वे स्वभावसे पृथक् स्वरूप हैं, इसलिए इनके बनाने और बिगाड़नेका काम ईश्वरको सपुर्द किया गया