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दुष्ट वाममार्गिओंकी प्रमाण शून्य कपोल कल्पित भ्रष्ट टीकाओं को देखकर वेदोंसे विरोधि हो कर अविद्यारूपी अगाध समुद्र में जा गिरे. (पृष्ठ ४०२ )
[ग]
सच तो यह है कि, जिन्होंने वेदोंसे विरोध किया और करते हैं और करेंगे वे अवश्य अविद्यारूपी अंधकार में पड़के सुखके बदले दारुण दुःख जितना पावें उतना ही न्यून है. ( पृष्ठ ४०२ )
जो वेद और वेदानुकूल आप्त पुरुषों के किये शास्त्रोंका अपमान करता है उस वेद निंदक नास्तिकको जातिपंक्ति और देशसे वाह्य कर देना चाहिये. (पृष्ठ १३ )
[ घ ]
ये चारवाकादि बहुतसी बातोंमें एक हैं परंतु चारवाक देहकी उत्पत्ति और उसके नाशके साथ ही जीवका भी नाश मानता है पुनर्जन्म और परलोकको नहीं मानता एक प्रत्यक्ष प्रमाणके विना अनुमानादि प्रमाणको भी नहीं मानता. बौद्ध और जैन प्रत्यक्षादि चारों प्रमाण अनादि जीव और पुनर्जन्म परलोक और मुक्तिको भी मानते हैं इतना ही चारवाकसे बौद्ध और जैनियोंका भेद है. परंतु नास्तिकता वेद ईश्वरकी निंदा परमत द्वेप और ६ यतना जगतका कोई कर्त्ता नहीं, इत्यादि बातोंमें सब एक ही हैं. यह चारवाकका मत संक्षेपसे दर्शा दिया. ( पृष्ठ ४०३ )
समालोचक - - सज्जनो ! अन्य मतोंके प्रतिवाद में हमारे
पूजनीय स्वामीजी महाराजने जिन मधुर शब्दों का व्यवहारः किया है, उन शब्दों में से कुछ तो आप ऊपर सुन ही चुके हैं
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