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________________ "श्रीकृष्णं आदि धार्मिक महात्मा नरकको गये यह कितनी "बड़ी बुरी बात है" लिखना मध्यस्थ प्रजामें केवल द्वेषामि भड़काना है ! स्वामीजीको उचित था कि वे प्रथम जैनग्रंथों को देख लेते और फिर कृष्णका नाम लेकर संसारको भड़काते। सज्जनो ! जैन मतमें जिस कृष्णका उल्लेख है वह गीता के उपदेष्टा कृष्णसे भिन्न है। क्योंकि जैनमतमें माने हुए कृष्णको हुए आज ८६४४० वर्षसे कुछ अधिक समय हो चुका है । वह अरिष्टनोम नामके २२ वें तीर्थकरके चचेरे भाई थे, ऐसा जैनोंका मानना है । और २२ वें तीर्थकरका निवर्णिसमय जैनोंके अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामीके निर्वाणसे ८४००० वर्ष पूर्व है और महावीर स्वामीके निर्वाणको आज २४४० मा वर्ष है। परंतु महाभारतमें उल्लिखित कृष्णको हुए आज लगभग पांच सहस्र (५०००)वर्ष हुए हैं । जैन मतमें बारह चक्रवर्ती ९ बलदेव ९ वासुदेव और ९ प्रतिवासु देवोंका इस अवसर्पिणीमें होना माना है, जिनमें कृष्ण. नवमं वासुदेव हुए हैं। इसलिए संसारका अधिक भाग जिस. कृष्णचंद्रको ईश्वरावतार मान रहा है, और स्वामी दयानंद और उनके भक्त जिस (अवतार) का घोर खंडन कर रहे हैं ! वे कृष्ण और जैनोंके माने हुए कृष्ण वासुदेवमें रात दिनका अंतर है ! स्वामीजीने कृष्ण भगवानका नाम लेकर जैनोंपर असभ्यता भरे शब्दोंसे जो आक्षेप किया है उसका मात्र हेतु, कृष्णके उपासकों का जैनोंसे द्वेष बढ़ानेका है, ऐसा उनके लेखसे स्फुट प्रतीत होता है। [स्वामीजीने जैनमतकी समीक्षा करते हुए बहुधा एक ही आंखसे काम लिया है। शायद वे नेत्र हीन गुरुके शिष्य थे इसीलिए! ! अन्यथा उनको जैनोंका कृष्ण,
SR No.010550
Book TitleSwami Dayanand aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Shastri
PublisherHansraj Shastri
Publication Year1915
Total Pages159
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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